जयपुर: विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार की मुसीबतें लगातार बढ़ती जा रही हैं. रोडवेज कर्मचारियों के बाद अब आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने भी कांग्रेस की गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.

आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने रविवार को राजधानी जयपुर के रामलीला मैदान में बड़ा धरना देकर शुरुआत कर दी है. इस धरने में पूरे राजस्थान से आंगनवाड़ी कर्मचारी, आशा सहयोगिनियां और साथिन कर्मचारी एकत्रित हुईं. आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गई तो राजस्थान की 62 हजार आंगनवाड़ियों पर ताले लग सकते हैं.

आक्रोशित आंगनवाड़ी कर्मचारियों का कहना सरकार ने वादा किया था की उन्हें परमानेंट किया जाएगा, लेकिन ऐसा अभी तक नहीं किया गया है. अगर सरकार उनको परमानेंट नहीं करेगी तो वे वोट भी नहीं देंगे और आंगनवाड़ी भी नहीं जाएंगे. कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने अपनी मांगों को लेकर समय- समय पर धरने प्रदर्शन किए हैं लेकिन सरकार उनकी नहीं सुन रही है. अगर अब भी ऐसा हुआ तो इसका खामियाजा सरकार को उठाना पड़ सकता है.

प्रदेश में करीब 62 हजार आंगनवाड़ियां संचालित हैं
राजस्थान में करीब 62 हजार आंगनवाड़ियां संचालित हैं. सरकार की हर योजना को सफल बनाने में आंगनवाड़ी कर्मचारियों की अहम भूमिका है. बिना आंगनवाड़ी की मदद से सरकार की योजनाओं को धरातल पर पहुंचाना बेहद मुश्किल होता है. अगर आंगनवाड़ी कर्मचारी आंगनवाड़ी जाना बंद कर देंगी तो सरकार के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है. इससे सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतारना काफी मुश्किल हो जाएगा.

अगला कदम आंगनवाड़ी नहीं जाने का होगा
आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने सरकार को साफ चेताया है कि अगर उनकी सुनवाई नहीं हुई तो अगला कदम आंगनवाड़ी नहीं जाने का होगा. कर्मचारियों का कहना है की कोरोना काल में बिना अपनी जान के परवाह किये उन्होंने सरकार के हाथ से हाथ मिला कर काम किया. इसके चलते उन्होंने अपने कई कर्मचारियों को खो भी दिया. लेकिन सरकार ने न तो कोई मुआवजा दिया और न ही मानदेय में वृद्धि की.

कर्मचारियों की ये हैं प्रमुख मांगें
कर्मचारियों की मांग है कि उन्हें राज्य कर्मचारी घोषित किया जाए. मानदेय में वृद्धि की जाए. मानदेय राशि बढ़ाकर 18 हजार की जाए. मानदेय दो बार की बजाय एक ही बार में ही दिया जाए. आंगनवाड़ी में पोषाहार की गुणवत्ता भी खराब आ रही है. उसे सुधारा जाए. इससे बच्चे और गर्भवती महिलाएं पोषित होने की बजाय कुपोषण का शिकार हो रहे हैं.