भोपाल। मध्य प्रदेश में कमल नाथ सरकार गिराकर कांग्रेस के जो विधायक और मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए थे, उन्हें 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में फिर से टिकट दिए जाने की पूरी गारंटी नहीं है। भाजपा इससे परहेज भी कर सकती है।
भाजपा ने पूरी की शर्त
पार्टी के बड़े नेताओं के अनुसार कांग्रेस से भाजपा में आने वाले इन नेताओं के साथ जो सहमति बनी थी, उसके तहत सिर्फ एक बार टिकट देने की शर्त थी। इन्हें उपचुनाव में टिकट देकर शर्त पूरी कर दी गई थी। आने वाले चुनाव में भी भाजपा उन्हीं नेताओं पर दांव लगाए, ऐसा कोई वादा नहीं हुआ था। इन्हीं संकेतों की वजह से कांग्रेस से भाजपा में आए ऐसे बहुत सारे नेताओं को भविष्य की चिंता सताने लगी है।
बेहतर छवि वालों को मिलेगा टिकट
हालांकि, भाजपा सूत्रों का कहना है कि जिन नेताओं की छवि और कामकाज बेहतर है व जिनकी जीत की संभावना है, पार्टी उन्हें अपना प्रत्याशी बनाएगी। जिन नेताओं के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं का सामंजस्य नहीं बैठ पा रहा है या जो स्वयं को पार्टी की रीति-नीति के हिसाब से नहीं ढाल पाए हैं, ऐसे नेताओं से पार्टी किनारा करेगी।
सर्वाधिक चुनौती चंबल-ग्वालियर अंचल में
भाजपा को ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस से आए नेताओं के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के पुराने नेता और कार्यकर्ता नाराज हैं। दूसरी तरफ ¨सधिया समर्थक भाजपा नेताओं और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के बीच अब तक समन्वय नहीं बन पा रहा है। यही वजह है कि पार्टी ग्वालियर में 57 साल बाद पहली बार महापौर का चुनाव हार गई।
टिकट बंटवारे को लेकर चिंतित है भाजपा
संगठन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहमति से प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद भी पार्टी हार गई। वहीं केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के लोकसभा क्षेत्र मुरैना के महापौर की कुर्सी भी भाजपा के हाथों से निकल गई। यही कारण है कि पार्टी इस क्षेत्र के टिकट बंटवारे को लेकर अभी से चिंतित है।
बदल सकते हैं कई भाजपा प्रत्याशी
कमलनाथ सरकार गिरने के बाद जब विधानसभा की 28 सीटों पर एक साथ उपचुनाव हुए तो उनमें सर्वाधिक सीटें ग्वालियर-चंबल की थीं। यहां 2020 में 16 सीटों पर उपचुनाव हुए, जिसमें भाजपा के पास 10 सीटें आई थीं, जबकि सरकार में भाजपा के होते हुए पूरी ताकत लगाने के बावजूद छह सीटों पर कांग्रेस जीत गई। मंत्री इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना और गिर्राज दंडोतिया तक चुनाव हार गए थे।
पूरे क्षेत्र में कांग्रेस एकजुट
अब बदली हुई परिस्थितियों में पूरे क्षेत्र में कांग्रेस एकजुट है। ऐसे में भाजपा के सामने प्रत्याशियों का चयन जटिल हो गया है। पार्टी यदि कांग्रेस से आए प्रत्याशियों पर ही दांव लगाती है तो उसके कार्यकर्ता चुनाव में कितना साथ देंगे, इसका भरोसा नहीं है। प्रत्याशी बदलते हैं तो बागियों से निपटना भी नई चुनौती होगी।