भोपाल । दीपावली पर मध्य प्रदेश के लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े. एनजीटी (NGT) के आदेशों के विपरीत बिना पर्यावरण की चिंता किये लोगों ने इस कदर पटाखे जलाए कि हवा प्रदूषित हो गई. प्रदूषण नियंत्रण मंडल के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में दीवाली की रात कई शहरों में हवा में पीएम लेवल 2.5 (खराब स्तर) तक पहुंच गया था. मध्य प्रदेश का सबसे प्रदूषित शहर उज्जैन दर्ज किया गया. एनजीटी की कड़ाई के बावजूद मध्य प्रदेश में पटाखों को छोड़ने के लिए तय नियमों पालन नहीं हुआ. प्रदेश में वायु प्रदूषण अपने तय मानक से अधिक दर्ज किया गया. दीपावली के बाद मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल में दर्ज हुआ एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स का स्तर बिगड़ा पाया गया.

मध्य प्रदेश के अलग-अलग शहरों के सामने आए आंकड़ों में सबसे ज्यादा प्रदूषित उज्जैन शहर दर्ज किया गया, जहां एयर क्वालिटी (AQI) का स्तर 267 तक पहुंच गया.

इतना ही नहीं मध्य प्रदेश के चार प्रमुख शहरों के हाल भी कोई अच्छे नहीं रहे. प्रदेश का सबसे प्रदूषित शहर उज्जैन था. यहां AQI का स्तर 267 था. जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर और भोपाल में भी हवा का स्तर “POOR” कैटेगरी पर पहुंचा. AQI का स्तर भोपाल में 255, ग्वालियर में 231,जबलपुर में 225, इंदौर में 210,कटनी में 224 तथा रतलाम में 236 रिकॉर्ड किया गया.

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल के मुताबिक पीएम 2.5 का स्तर हवा में 100 तक सामान्य माना जाता है.अगर पीएम का स्तर 100 से 200 के बीच है तो उसे संतोषजनक माना जाता है ,लेकिन 200 से ऊपर पीएम का स्तर पहुंचने पर इसे खराब श्रेणी में रखा जाता है. एनजीटी की सख्ती के चलते इस बार ग्रीन पटाखों का उपयोग ज्यादा होने के दावे किए गए थे लेकिन बावजूद इसके वायु प्रदूषण का स्तर इन दावों की पोल खोल रहा है.

यहां बता दें कि पीएम 2.5 का स्तर धुएं से ज्यादा बढ़ता है यानी कि अगर हम कुछ चीजें वातावरण में जलाते हैं, तो वो पीएम 2.5 का स्तर बढ़ाता है. ये धुएं, धूल आदि के कणों को दर्शाता है यानि कि हवा में मौजूद कण 2.5 माइक्रोमीटर छोटे हैं.वहीं पीएम 10 का मतलब होता है कि हवा में मौजूद कण 10 माइक्रोमीटर से भी छोटे हैं, और जब पीएम 10, पीएम 2.5 का स्तर 100 से ऊपर पहुंचता है. तो ये खराब श्रेणी को दर्शाता है यानि हवा में धूल, मिट्टी, धुंध के कण ज्यादा मात्रा में मौजूद है. जो आसानी से सांस के जरिए आप के फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं. यह बच्चों,बुजुर्गों और अस्थमा के मरीजों के लिए बेहद नुकसानदायक साबित होता है.