भोपाल । मध्य प्रदेश में अब लिव इन में रहने वाली महिलाओं की शिकायत पर दुष्कर्म का केस सीधे दर्ज नहीं हो । अब शिकायत मिलने पर पुलिस पहले दोनों के बीच में मध्यस्थता करेगी,साथ ही पुलिस अब पार्टनर का भी पक्ष सुनेगी और महिला का पक्ष सही पाए जाने के बाद ही मामला दर्ज किया जाएगा।
दरअसल इस संबंध में प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने बताया ऐसे अधिकांश मामलों में कुछ गलतियां पाई जाती है। अधिकांश मामलों में संदिग्ध पलट जाते हैं या बयान बदल दिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि अब तय किया गया है कि पहले पूरे मामले की तह तक जाया जाए। पूरे मामले की तह तक जाने के बाद ही अब कोई कानूनी कार्रवाई होगी। पूरे देश में मध्य प्रदेश ही सभंवतया पहला प्रदेश होगा, जहां लिव इन में रहने वालों के खिलाफ सीधे एफआईआर दर्ज नहीं होगी।
इसी कड़ी में प्रदेश की पुलिस ने सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश जारी किया है। निर्देश केवल उन मामलों के लिए है, जिनमें लिव-इन पार्टनर बालिग हैं या होंगे।
महिला सुरक्षा शाखा ने पिछले तीन सालों के रेप केसों और उनमें सजा दर का अध्ययन किया है। इस मामले में अपराधियों को सजा की दर केवल करीब 30 से 35 प्रतिशत है। महिलाओं के बयान पर पलटने से कई बार आरोपी बच जाते हैं, जिससे पुलिस प्रशासन की छवि पर विपरीत असर पड़ता है। जिन मामलों में अपराधी को सजा नहीं मिलती, उनमें पाया गया कि करीब 80% मामलों में फरियादी अपने बयान बदल देती हैं या आरोपी से समझौता कर लेती है। इनमें से ज्यादातर मामले वो है जिनमें फरियादी लिव-इन रिलेशनशिप में थी या आरोपी के साथ रिलेशनशिप में थी।
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के हिसाब से अगर लंबे समय से महिला और पुरुष साथ रह रहे हैं और बाद में उनके रिश्ते खराब हो जाते हैं, तो ऐसे में बलात्कार का आरोप लगाना सही नहीं है। कई बार देखा जाता है कि कई मामलों में ऐसा भी आरोप लगाया जाता है कि शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाए गए, लेकिन ऐसे में भी पुरुष के खिलाफ दुष्कर्म का केस नहीं बनता।
बता दें कि मध्य प्रदेश की पुलिस ने 2017 आईपीसी 6 और सीआरपीसी की 5 धाराओं में संशोधन के लिए विधि विभाग को एक प्रस्ताव भेजा था, साथ ही लिव-इन के मामलों को धारा 493 (क) के तहत दर्ज करने और इसमें अधिकतम 3 साल की सजा का प्रावधान प्रस्तावित था। बताया जा रहा है कि इसे विधानसभा में रखा गया था, जो पारित हो गया था, जिसके बाद मध्य प्रदेश क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट-2017 को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था, लेकिन अब तक इसे लेकर कोई फैसला नहीं हो सका है।
जानकारी के अनुसार अगस्त माह में प्रदेश के सभी जिला न्यायालयों में कुल 392 मामलों में फैसला आया, जिसमें केवल 99 मामलों में ही सजा हुई, जबकि 293 आरोपी दोषमुक्त हुए। बताया जा रहा है कि इनमें से 10 जिले ऐसे है भी है जहां सभी मामलों में आरोपी दोषमुक्त हो गए। पुलिस हेडक्वार्टर ने सभी जिलों उन मामलों की समीक्षा करने को कहा है, जिनमे आरोपियों को सजा नहीं मिली है। रिपोर्ट्स की माने तो महिलाओं से रेप के मामले में मध्य प्रदेश कई सालों से देश में अव्वल है। वर्ष 2021 में करीब 6462 रेप के मामले दर्ज हुए। जिनमें से 2947 मामलों में पीड़िता की उम्र 18 से ज्यादा थी और 2947 मामलों में केवल 1042 मामलों में ही अपराधी को सजा हो सकी।