भोपाल। प्रदेश में राजस्व विभाग में पदस्थ 277 संयुक्त कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, एएसएलआर, राजस्व निरीक्षक, पटवारी और राजस्व विभाग में पदस्थ लिपिक, भृत्य करप्शन के गंभीर मामलों में उलझे हैं और लोकायुक्त तथा अन्य आर्थिक अपराध की जांच करने वाली एजेंसियां इनके विरुद्ध केस दर्ज कर चुकी हैं। सबसे अधिक मामले जबलपुर और रीवा जिले में पदस्थ रहे अफसरों कर्मचारियों के विरुद्ध दर्ज हैं। वहीं झाबुआ में एक भी केस किसी भी कैटेगरी के अफसर कर्मचारी पर दर्ज नहीं है।
यह स्थिति प्रदेश मे पिछले करीब साढ़े चार साल के अंतराल में लोकायुक्त और अन्य करप्शन जांच करने वाली एजेंसियों की रिपोर्ट में सामने आई है। सरकार द्वारा राजस्व विभाग के उच्चतम पदों पर कार्य कराने वाले अपर कलेक्टर, संयुक्त कलेक्टर से लेकर बाबू तक की जानकारी लोकायुक्त और अन्य जांच एजेंसियों से मांगी गई थी। इसके बाद यह पता चला है कि रिश्वत के मामले में प्रदेश में सबसे अधिक 154 करप्शन के मामले पटवारियों के विरुद्ध दर्ज हैं। डिप्टी कलेक्टर, एसडीएम, संयुक्त कलेक्टर स्तर के 11 अधिकारियों और तहसीलदार, नायब तहसीलदार, एएसएलआर कैडर के अफसरों के विरुद्ध 15 मामले पंजीबद्ध होकर विवेचना और चालान की प्रक्रिया में हैं। राजस्व निरीक्षकों के विरुद्ध 33 मामले अलग-अलग जिलों में घूस लेने को लेकर दर्ज हैं। इसके अलावा 64 लिपिक और भृत्य भी घूस लेने के मामले में जांच का सामना कर रहे हैं। विधानसभा में भी यह मामला आया जिसमें भाजपा विधायक यशपाल सिसोदिया ने सभी राजस्व अफसरों, कर्मचारियों के विरुद्ध जांच की विस्तृत जानकारी शासन से मांगी थी।
टेÑप होने वालों में संयुक्त कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर, तहसीलदार शामिल
रिश्वत लेते हुए टेÑप होने वाले अफसरों में जिनके प्रमुख नाम सामने आए हैं, उसमें संयुक्त कलेक्टर डीआर कुर्रे, प्रदीप सिंह तोमर, अनिल सपकाले, डिप्टी कलेक्टर दीपक चौहान, मनीष कुमार जैन, आशाराम मेश्राम,आरके वंशकार के नाम शामिल हैं। इसी तरह तहसीलदार नन्हे लाल वर्मा, शारदा, आलोक वर्मा, लक्ष्मण प्रसाद पटेल, आदर्श शर्मा, संजय नागवंशी, नायब तहसीलदार गौरीशंकर बैरवा, रोहित रघुवंशी, किरण गहलोत, भगवान दास तनखानिया, रविशंकर शुक्ल, गौरव पांडेय, भुवनेश्वर सिंह मरावी भी लोकायुक्त और अन्य मामले में जांच के घेरे में हैं।
आदिवासी अंचल के जिलों में नाम मात्र प्रकरण
इस रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि आदिवासी अंचल के जिलों में ट्रेप के नाम मात्र प्रकरण हैं। झाबुआ जिले में एक भी शिकायत नहीं है तो बड़वानी, अलीराजपुर जैसे जिलों में एक-एक मामले दर्ज हैं। इसी तरह की स्थिति कुछ अन्य आदिवासी जिलों की भी है। विधायक यशपाल सिसोदिया बताते हैं कि अधिकारी तो वही हैं लेकिन इन अंचलों में ऐसे केस कम आने के पीछे मुख्य वजह लोगों मे ंजागरुकता की कमी है। इसी कारण आदिवासी जिलों के रहवासी पैसे देने के बाद काम पर जोर देते हैं। वहीं दूसरी ओर जिन जिलों में सर्वाधिक केस टेÑप हुए हैं, उन जिलों में लोगों की जागरुकता के कारण ऐसा हुआ है। मुफ्त और नाम मात्र शुल्क लेने की सरकार की सेवाओं में रिश्वत लेने की अफसरों की इस कोशिश को टेÑेप के जरिये खत्म करने का काम यहां तेजी से हुआ है।