भोपाल। मध्य प्रदेश में भाजपा नेतृत्व सत्ता विरोधी माहौल को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर चेहरों को बदल सकता है। राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके लिए पार्टी में एक-एक सीट को लेकर रिपोर्ट तैयार की जा रही है। हाल ही में अजय जामवाल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री बनाए गए। उनके कमान संभालते ही संगठन में चुनावी कामकाज को लेकर तेजी आई है।
एमपी में भाजपा 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीती थी, लेकिन 2018 में उसे कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि, कांग्रेस सरकार लगभग सवा साल ही चल सकी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफे के साथ हुई बगावत में 22 कांग्रेस विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया और भाजपा का दामन थाम लिया। इससे राज्य में भाजपा की फिर से सरकार बन गई। इनमें से अधिकांश को भाजपा ने टिकट दिया और कई जीत कर भी आए और कुछ मंत्री भी बने।
कांग्रेस से आए नेता बन रहे मुसीबत
भाजपा अगले साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी है। कई बड़े नेता जो पिछला विधानसभा चुनाव कांग्रेस के उन्हीं नेताओं से हार गए थे, जो बाद में भाजपा में आकर फिर विधायक बन गए हैं। ऐसे में हारे हुए वरिष्ठ नेताओं को मौजूदा विधायक का टिकट काटकर उम्मीदवार बनाना मुश्किल है।
इनमें मौजूदा मंत्री प्रद्युम्न सिंह से हारे पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया, मनोज नारायण चौधरी से हारे पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे पूर्व मंत्री दीपक जोशी, प्रभुराम चौधरी से हारे पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार, सांवेर में तुलसी सिलावट से हारे राजेश सोनकर, बदनावर में राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव से हारे भंवर सिंह शेखावत, सुवासरा में हरदीप सिंग डांग से हारे राधेश्याम पाटीदार शामिल हैं।
बदले जाएंगे कई चेहरे
सूत्रों के अनुसार राज्य में सत्ता विरोधी माहौल को देखते हुए भाजपा कई विधायकों के टिकट काट सकती है, लेकिन कांग्रेस से आए विधायकों के मामले में ज्योतिरादित्य सिंधिया का राय अहम होगी। ऐसे में अगर उनको फिर से टिकट मिलता है तो भाजपा के प्रमुख नेताओं को कोई और सीट या अन्य विकल्प तलाशना होगा।
पिछला चुनाव हार गई थी भाजपा
बीते विधानसभा चुनाव में 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 114, भाजपा को 109, बसपा को दो और सपा को एक सीट मिली थी। चार निर्दलीय भी जीते थे। इसके बाद कांग्रेस के विभाजन और कई विधायकों के पार्टी छोड़ने के साथ ही बसपा के विधायकों के भाजपा में शामिल होने से भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है।