ग्वालियर।  उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर के प्रशासनिक न्यायाधिपति न्यायमूर्ति श्री रोहित आर्या ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को बाल पीड़ितों से अपने बच्चों की तरह व्यवहार करना चाहिए। पीड़ित के प्रति संवेदनशील नजरिया रखकर ही हम सही मायने में न्याय दिला सकते हैं। न्यायमूर्ति श्री आर्या किशोर न्याय एवं लैंगिक अपराधों से बच्चों के संरक्षण संबंधी अधिनियम पर आयोजित हुई संभाग स्तरीय संयुक्त प्रशिक्षण कार्यशाला के उदघाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। 
रविवार को यहाँ अभियोजन संचालनालय मध्यप्रदेश द्वारा गारमेंट पार्क “दुकूल” के सभागार में आयोजित हुई इस कार्यशाला में उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर के न्यायमूर्ति श्री जी एस अहलूवालिया बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता महानिदेशक एवं संचालक मध्यप्रदेश लोक अभियोजन अन्वेष मंगलम ने की। इस अवसर पर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक चंबल राजेश चावला व ग्वालियर डी श्रीनिवास वर्मा मंचासीन थे। कार्यशाला में ग्वालियर, चंबल व सागर संभाग के सभी जिलों से आए पुलिस, लोक अभियोजन एवं महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने भाग लिया। प्रशासनिक न्यायाधिपति श्री आर्या ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि सिर्फ कानून का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है। प्रकरणों के तथ्यों की विस्तृत जानकारी रखना भी महत्वपूर्ण हैं। बाल अपराधों की विवेचना से जुड़े अधिकारियों को अपराध के त्वरित कारणों को लेखबद्ध करना चाहिए। साथ ही पीड़ित की सामाजिक स्थिति और अभियुक्त के साथ पीड़ित के पूर्व संबंधों की जानकारी भी जुटानी चाहिए। इन सबका खुलासा चार्जशीट में प्रस्तुत करना चाहिए। यदि हम इन सब बातों का ध्यान रखेंगे तो निश्चित ही पीड़ित को न्याय दिला पायेंगे। 
न्यायमूर्ति श्री जी एस अहलूवालिया ने पुलिस व लोक अभियोजन अधिकारियों से कहा कि किशोरों व बच्चों को कल के भविष्य के रूप में देखें। जिस प्रकार पत्थर को जब तक तराशा नहीं जायेगा वह कलाकृति का रूप नहीं ले सकता। उसी तरह जब हम बच्चों की मन:स्थिति को समझकर उनमें सकारात्मक सोच विकसित करेंगे तभी हम देश के कल के भविष्य को सँवार पायेंगे। उन्होंने कहा कोई बालक यदि आपराधिक पृष्ठभूमि के बाहर नहीं आयेगा तो वह कल का भविष्य नहीं बन पायेगा। श्री अहलूवालिया ने जोर देकर कहा कि सिर्फ अधिनियम की धारा पढ़ने के बजाय अधिनियम के उद्देश्यों को भी समझें। कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे महानिदेशक एवं संचालक लोक अभियोजन अन्वेष मंगलम ने कहा कि पुलिस, लोक अभियोजन और महिला बाल विकास के अधिकारी एक – दूसरे के दायित्वों को समझें और समन्वय बनाकर न्यायालय में ऐसी पैरवी करें, जिससे पीड़ित को न्याय मिल सके। हमारे प्रयास ऐसे हों कि पीड़ित एवं साक्ष्यकार जब न्यायालय में पहुँचें तो उन्हें सुख की अनुभूति हो। पीड़ित के दुख – दर्द को समझकर यदि पैरवी होगी तो निश्चित ही न्याय का मार्ग सशक्त होगा। उन्होंने अपने कार्य का फीडबैक लेने पर भी बल दिया। 
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक चंबल राजेश चावला ने कहा कि पैरवी ऐसी हो जिससे पीड़ित की मानसिकता नकारात्मकता की ओर न जाए। उन्होंने कहा कि डायरी लेखन अच्छे पुलिस अधिकारियों के प्रमुख गुणों में से एक है। इसलिये अपने कौशल में पैनापन लाकर अच्छे विवेचक बनें। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ग्वालियर डी श्रीनिवास वर्मा ने कहा कि बाल अपराध बहुत ही गंभीर और संवेदनशील होते हैं। इसलिए पूरी संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ इन अपराधों की विवेचना करना चाहिए। कार्यशाला में चार सत्रों में न्यायमूर्ति श्री जी एस अहलूवालिया, विशेष न्यायाधीश पॉक्सो न्यायालय श्रीमती निवेदिता मुदगल व श्रीमती आरती शर्मा तथा सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति श्री एम के मुदगल सहित अन्य विषय विशेषज्ञों ने किशोर न्यायालय पॉक्सो अधिनियम की बारीकियाँ बताईं। आरंभ में अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यशाला का शुभारंभ किया। 
प्रशिक्षण कार्यशाला में जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री प्रेमनारायण सिंह, उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर के प्रिंसिपल रजिस्ट्रार देवनारायण मिश्रा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अमित सांघी तथा अन्य संबंधित अधिकारी मौजूद थे। कार्यक्रम की रूपरेखा उप संचालक अभियोजन प्रवीण दीक्षित ने रखी। उदघाटन सत्र का संचालन अभय प्रताप सिंह राठौर ने किया।