रायपुर।  सन्मति नगर फाफाडीह में ससंघ विराजित आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने धर्मसभा में कहा कि स्वयं के मुख से, स्वयं के परिचितों से प्रशंसा पाना सरल है,अपरिचित व्यक्ति यदि आप की चर्चा करे तो आप प्रशंसनीय हो। जो अपने हैं वे तो राग के वश भी आपकी प्रशंसा कर सकते हैं। कोई माता-पिता अपने बेटे की बुराई नहीं करेगा,अपनी संतान को गलत नहीं कहेगा। ये राग ही है जो सत्य से बहुत दूर करता है,राग और द्वेष सत्य कहने नहीं देते। जीवन में सत्य को समझना है तो राग और द्वेष से बचकर रहना चाहिए।

आचार्यश्री ने कहा कि राग अवगुणियों में भी गुण देखता है और द्वेष गुणियों में भी दोष देखता है। जिनके पास राग और द्वेष दोनों हैं, वे सत्य बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे। संसार में यदि आप कुछ बोल रहे तो विचार करना आप जो कह रहे हो उसमें राग और द्वेष तो नहीं है। अहम में मत डूबना मैं ही सर्वस्व हूं। हर व्यक्ति में गुण होते हैं। दिव्यांगों का भी अपमान जीवन में मत करना क्योंकि सब के दिन एक से नहीं होते। अपना जीवन जंगल नहीं करना, जो ऋण लेकर जीवन जीते हैं वे लोग अपना जीवन को जंगल बना देते हैं।  जितनी क्षमता हो उतना दान देना,तप तपस्या करना और कार्य करना।

आचार्यश्री ने कहा कि देश में जितने राज्यों और राजवंशों का नाश हुआ, जहां धर्म का नाश हुआ,उसका मूल बिंदु अयोग्यता थी। जो योग्य न होने पर भी अपने आपको योग्य बता कर आगे आ जाते हैं ऐसे अयोग्यों से सर्वनाश ही होता है। जो द्वेषी होते हैं वे लोग योग्य लोगों को आगे आने नहीं देते। ऐसी जगह उन अयोग्यों की योग्यता सम्मान तो पा सकती है लेकिन शासन नहीं चला सकती। अयोग्यता कभी दीर्घ समय तक नहीं टिक पाती,अयोग्यता नियम से नष्ट होती है। किसी संस्था, धर्म,समाज, राज्य व राष्ट्र को ऊंचाइयां देना चाहते हो तो योग्य और अयोग्य का ध्यान देना होगा।

आचार्यश्री ने कहा कि संसार का सुख  कमार्धीन है,तत्व का निर्णय स्वाधीन है।अपने-अपने तत्व का निर्णय करके  जीवन जियो। यह विभूतियां,चेहरे की चमक विलीन हो उसके पहले अपनी आत्मा को,अपने चारित्रय को चमका लो। चेहरे की चमक लंबे समय तक नहीं रहती। युवा अवस्था में व्यक्ति जितना संयमित रहेगा वह वृद्ध अवस्था में उतना सुरक्षित रहेगा। जैसे युवा अवस्था में कमाकर संरक्षित रखा धन बुढ़ापे में काम आता है,वैसे ही युवा अवस्था में संग्रहित व संरक्षित किए पुण्य से वृद्ध अवस्था को श्रेष्ठ करता है।