भोपाल। चैरिटेबल ट्रस्ट, अस्पताल और शैक्षणिक संस्थानों की आड़ में बढ़ते आयकर चोरी के चलते अब विभाग ने सख्ती बरतना शुरू कर दिया है। अब तमाम संस्थाओं और ट्रस्टों को अब पाई-पाई का हिसाब किसी कार्पोरेट कंपनी की तर्ज पर रखना होगा। 10 वर्ष तक के पूरे लेन-देन का ब्यौरा संरक्षित रखना अनिवार्य कर दिया गया है। 1 अक्टूबर से सभी ट्रस्ट और संस्थाओं पर ये नियम लागू हो जाएंगे। आयकर अधिनियम में संशोधन कर वित्त मंत्रालय ने नए नियमों की अधिसूचना 10 अगस्त को जारी कर दी है।
दानदाता का भी रखना होगा हिसाब
हर ट्रस्ट, शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल, विश्वविद्यालयों को अपनी कैशबुक, लेजर, जर्नल के साथ प्रत्येक बिल, हर भुगतान की रसीदें रखना होंगी। किसी से कोई दान मिला है तो उसके हिसाब के साथ दानदाता का पैन, आधार नंबर जैसी जानकारी भी रखना होगी। ट्रस्ट को उधार लेन-देन का रिकार्ड भी मेंटेन करना होगा। अगर ऐसे ट्रस्ट या धार्मिक-पारमार्थिक संस्थान अपने सुधार, मरम्मत पर खर्च करते हैं तो उसके बिल आदि भी रिकार्ड में रखने होंगे।
रिकार्ड को इलेक्ट्रानिक रूप में भी संरक्षित रखना होगा
विभाग ने निर्देश दिया है कि ये रिकार्ड इलेक्ट्रानिक रूप में भी संरक्षित रखा जाए। संबंधित क्षेत्रीय अधिकारी को सूचित किया जाए कि रिकार्ड कहां रखा गया है। 10 वित्त वर्षों का रिकार्ड मेंटेन रखना जरूरी कर दिया गया है। आयकर विभाग कभी भी बीते दस वर्षों के आय-व्यय खर्च का लेखा-जोखा मांगे तो उपलब्ध करवाना होगा। किसी मामले में आयकर विभाग धारा 147 में नोटिस देता है तो ऐसे में मामले में रिकार्ड संरक्षण की अवधि 10 वर्ष पर सीमित नहीं रहेगी। नए नियमों में स्पष्ट कर दिया गया है कि जब तक प्रकरण समाप्त नहीं हो जाती, तब तक पूरा रिकार्ड संरक्षित रखना होगा।
परेशानी में ट्रस्ट, बढ़ जाएगा खर्च
नए नियमों के अनुसार अब ट्रस्ट और संस्थानों के लिए वित्तीय रिकार्ड मेंटेन करना आसान नहीं होगा। इनका संधारण और अकाउंटिंग का खर्च तो निश्चित रूप से बढ़ जाएगा। इसके पीछे आयकर विभाग की मंशा टैक्स लेने की नहीं दिख रही। ट्रस्टों को आयकर से छूट हासिल है, लेकिन पैमानों के अनुसार रिकार्ड मेंटेन नहीं करने वाले ट्रस्टों की छूट आयकर समाप्त कर सकता है। ऐसे में ट्रस्टों का उच्च कर दर और छूट समाप्त होने के खतरे का सामना करना पड़ेगा।
दबाव में अस्पताल-शिक्षण संस्थान
धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के साथ ही अस्पताल, स्कूल-कालेज भी ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत होते हैं। अब तक इनके बही-खातों के संधारण को लेकर कोई नियम स्पष्ट नहीं था। नए नियमों के बाद धार्मिक-सामाजिक ट्रस्टों पर दान और खर्च का ब्योरा रखना मुश्किल होगा। खास असर अस्पताल और शैक्षणिक संस्थानों पर पड़ेगा। अस्पताल और स्कूल-कालेज अब तक बिना लाभ-हानि के संचालित होने का दावा करते रहे हैं। इन्हें कर में छूट तो मिलती ही है। इस आधार पर ये हर वर्ष फीस वृद्धि और अनुदान आदि भी हासिल करते रहे हैं। अब इनके लिए आय छुपाना और घाटा दिखाना आसान नहीं होगा।