इंदौर। जहां न्याय मिलने में बरसों लग जाते हैं… उम्र बीत जाती है, लेकिन तारीख (Date) पर तारीख थम नहीं पाती है, वहीं मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के इतिहास में न केवल छुट्टी के दिन केवल सात घंटे में एक छोटी सी तहसील के आम आदमी को चीफ जस्टिस ने न सिर्फ इंसाफ दिलवाया, बल्कि शायद न्याय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि सूरज ढलने के बाद तक बैठी अदालत ने फैसला भी सुनाया और किसी की रोजी को लुटने से बचाया…
रतलाम जिले की जावरा तहसील में स्थानीय निगम ने विजय नाहर नामक व्यक्ति के 21 वर्ष पुराने निर्माण को 24 घंटे में तोडऩे के आदेश दिए और 8 अगस्त मोहर्रम छुट्टी का दिन तोडफ़ोड़ के लिए मुकर्रर किया…भागता-दौड़ता व्यापारी इंदौर पहुंचा और स्थानीय वकील नितिन फडक़े और रोहित सिन्नरकर से संपर्क किया…वकीलद्वय ने मामले की गंभीरता को समझकर अपने सीनियर काउंसिल के माध्यम से दोपहर करीब 12.30 बजे इंदौर उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार से संपर्क किया, ताकि उनके मुवक्किल को छुट्टी के दिन इंसाफ मिल सके…रजिस्ट्रार ने अपनी व्यस्तता को ताक पर रखते हुए रिट पिटीशन बुलाई और पढऩे-समझने के बाद मामला चीफ जस्टिस को बताना उचित समझा और उनके निजी सचिव को मामला समझाया…निजी सचिव से मामला सुनने के बाद चीफ जस्टिस ने मेल पर पिटीशन की कॉपी बुलवाई और उन्होंने एक आम आदमी को इंसाफ दिलाने के लिए इंदौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से संपर्क कर उनकी उपलब्धता जानी…इस पर न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने सहमति देते हुए न्याय के मुखिया की पहल को न केवल स्वीकारा, बल्कि छुट्टी के दिन भी घर पर सुनवाई के बजाय अदालत में सुनवाई के लिए कोर्ट खुलवाई और स्टाफ को बुलवाया…मोहर्रम की छुट्टी के दिन 8 अगस्त को शाम 6 बजे से शुरू हुई सुनवाई में बताया गया कि याचिकाकर्ता का निर्माण कार्य पूरी तरह से वैध है, जिसका नक्शा पास कराया गया था। इसके बावजूद जावरा निगम ने वर्ष 2003 में हुए इस निर्माण के विरुद्ध नोटिस जारी किया था, जिसके विरुद्ध उसी समय वादी ने उच्च न्यायालय में गुहार लगाकर जावरा निगम के खिलाफ निर्देश लिए थे कि वह पूरी जांच कर सुनवाई के पश्चात निर्देश जारी करे, लेकिन निगम ने 19 वर्ष बाद बिना किसी सुनवाई के निर्माण तोडऩे के लिए छुट्टी का दिन मुकर्रर कर दिया, ताकि पीडि़त न्याय की शरण में न जा सके… न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने मामले की सुनवाई के बाद शाम 7 बजे तोडफ़ोड़ पर स्थगन आदेश दिया और मात्र 15 मिनट में अधिवक्ता नितिन फडक़े को आदेश की प्रति भी उपलब्ध करा दी… एक आम आदमी को मिले इस इंसाफ ने न केवल उस सोच को झुठला दिया कि अदालत केवल रसूखदारों के इंसाफ के लिए दरवाजे खोलती है, बल्कि यह नजीर भी स्थापित कर दी कि इंसाफ के लिए न देर है न अंधेर…