ये कहानी है कोरोना से मम्मी-पापा को खो चुके भोपाल के भाई-बहन की। मई 2021 को वनिशा और उनके भाई विवान पर दुखों का पहाड़ टूटा। कोरोना महामारी ने मम्मी का प्यार, पापा का लाड़ और दुलार छीन लिया। जख्म कभी नहीं भुलाने वाला है, लेकिन जीना भी इसी के साथ है। दोनों आज एक-दूसरे के लिए पेरेंट्स बन गए हैं। वनिशा 18 साल और विवान 12 साल के हैं। रक्षाबंधन के मौके पर खास बात की।

15 मई 2021 मेरी लाइफ का ट्रेजिक डे था। इसी दिन मुझे पता चला कि मम्मी-पापा दोनों नहीं रहे। मम्मी की डेथ तो 4 मई को ही हो गई थी, लेकिन किसी ने बताया नहीं। हॉस्पिटल स्टाफ ने सोचा पापा के ठीक होने के बाद इन्फॉर्म कर देंगे। अनफोर्च्युनेट्ली 15 मई को पापा की भी डेथ हो गई। इसी दिन पता चला था कि दोनों नहीं रहे। इसके बाद तो 2-3 दिन तक मैं होश में नहीं थी। मैं तो विवान के सामने रो भी रही थी और पता नहीं क्या नहीं किया होगा मैंने… लेकिन यह भाई, जो मुझसे 6 साल छोटा है, मेरे सामने आज तक नहीं रोया।

कुछ दिन पहले ही कोई आया था तो मैं बोलते-बोलते रो दी, लेकिन ये नहीं रोया। बोला- दीदी ठीक है…। शायद वक्त से पहले बड़ा हो गया मेरा भाई…। ​​​​​विवान मेरी काफी केयर करता है। मेरे पास इतना टाइम नहीं रहता। मेरी कोचिंग रहती है। अभी कुछ दिन पहले की बात है। घर में ब्रेड पकोड़ा बना था। बारिश हो रही थी। विवान को भी स्कूल जाना था, लेकिन फिर भी वो किसी को बिना बताए डेयरी तक गया सॉस का पैकेट लाने। क्योंकि, वो जानता है कि मैं बिना सॉस के ब्रेड पकोड़ा नहीं खाती।

सच बात तो ये है कि विवान मुझसे काफी छोटा है, फिर भी मैं उसकी इतनी केयर नहीं कर पाती, जितनी वो मेरी करता है। गर्मी के दिनों में मेरा पढ़ाई से उठकर कूलर भरने में टाइम जाता था तो वो कूलर भर देता था। हम दोनों के स्कूल का टाइम सेम है। मैं जब खाना खाने आती हूं तो मुझे थाली हर दिन रेडी मिलती है। विवान पूरा खाना गरम करके सर्व कर देता है।

अभी मैं JEE (जॉइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन) की तैयारी कर रही हूं। मैं यह कहना चाहूंगी की अगर मेरा सिलेक्शन होगा तो वो मामा-मामी और विवान की वजह से ही होगा। 99% मेरी केयरिंग का क्रेडिट विवान को जाता है।