ग्वालियर।  निकाय चुनावों में बागियों का बोलबाला दिख रहा है। पूरे सूबे में नाम वापसी के बाद भी दो हजार से ज्यादा भाजपा – कांग्रेस के बागी चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। अकेले ग्वालियर की बात करें तो यहां तो बागियों ने चुनावी समीकरण ही बिगाड़ दिया हैं। हर वार्ड में दो से तीन बागी दोनों प्रमुख दलों के चुनावी समर में कूद गये हैं। इससे पार्टी प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ गई है। वही कार्यकर्ताओं के लिए भी असमंजस पैदा हो गया है कि वह संबंध निभाये या पार्टी विचारधारा के साथ चलें। हालांकि अधिकृत प्रत्याशियों के साथ कार्यकर्ता कम ही देखने को मिल रहे हैं। वहीं बागियों ने काफी रंग जमा रखा है।
नगरों की सरकार चुनने के लिए पूरे सूबे में चुनावी माहौल अब गरमा गया है। नाम वापसी के बाद भी भाजपा कांग्रेस के कई बागियों ने अपने आका नेताओं की न मानकर चुनावों में ही भाग्य आजमाने का फैसला किया है। बागियों को मनाने में नाकाम हुये नेताओं के कारण अधिकृत प्रत्याशी परेशान है। पूरे सूबे में बागियों के असर से राजनीतिक हवा किस ओर रूख करेेगी कहना मुश्किल है। वहीं ग्वालियर में तो स्थिति ओर भी गड़बड़ है। यहां तो चुनावी चक्कलस हर गली मौहल्लों में लोगों की टुकड़ी बयां कर देती है। कोई कहता है भाजपा आगे है तो काई कांग्रेस कहता है आगे है। मजे की बात तो यह है कि सबके मुंह से एक बात यह भी सुनाई पड़ती है फलाना रंग में भंग न कर दें। फलाना का तात्पर्य बागी नेताओं से है। ग्वालियर में कुल 66 वार्डों में इलेक्शन होना है। हर वार्ड में दोनों प्रमुख दलों के अलावा आम आदमी पार्टी भी भाग्य आजमा रही है तो वहीं दोनों दलों के बागी नेता निर्दलीय के रूप में मैदान में उतर गये है। इन बागियों ने प्रमुख दलों के जहां समीकरण बिगाड़ दिये है। वहीं कार्यकर्ता भी किसका प्रचार करें इस असमंजस में है। नाम वापसी के आखिरी दौर तक नेताओं ने बागियों की काफी मान मनौब्बल की, परंतु बात कहीं पर बनी तो कहीं न मनी। इससे चुनावी खेल ओर रोचक हो गया है। ग्वालियर में हर वार्ड में बागी के मैदान में उतरने से अब मुकाबला कड़ा और परिणाम कुछ भी होने के कगार पर पहुंच गया है।