नई दिल्ली। केंद्र सरकार और 35 राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों के 22 लाख करोड़ रुपये राजस्व का करीब 42 फीसदी अब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाकर एकत्र किया जाए, जिसे संसद के उच्च सदन ने बुधवार को पारित कर दिया। इसे कई विशेषज्ञों ने भारत का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया है।
केंद्र और राज्य सरकार के राजस्व में 9.20 लाख करोड़ रुपये 15 अलग-अलग प्रकार के करों के माध्यम से आता है, जिसमें केंद्रीय उत्पाद शुल्क से लेकर जुआ खेलने पर लगने वाली लेवी भी शामिल है। ये सभी अलग-अलग प्रकार के कर जीएसटी में शामिल हो जाएंगे, जिसने 1 अप्रैल 2017 से लागू किया जाएगा।
उद्योग जगत फिलहाल कई सारे करों का उत्पाद या सेवाओं के अलग-अलग स्तर पर भुगतान करता है। जैसे निर्माता, परिवहन, थोक बिक्रेता, खुदरा बिक्रेता और लाजिस्टिक आदि हर चरण में करों का भुगतान किया जाता है। इन करों के प्रबंधन में बहुत सारी कागजी कार्रवाई करने की जरूरत होती है, जिसके कारण एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यापार में देरी होती है और उपभोक्ताओं को भी अधिक लागत चुकानी होती है।
इनमें से ज्यादातर करों को जीएसटी में ही शामिल कर लिया गया है। अब जीएसटी में किया गया संशोधन एक बार फिर लोकसभा में जाएगा। वहां से पारित होने के बाद इसे देश के कम से कम आधे विधानसभाओं में पारित करना होगा। इस दौरान जीएसटी लागू करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी को तैयार किया जा रहा है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सॉफ्टवेयर टेस्टिंग का कम अक्टूबर 2016 में किया जाएगा। हालांकि यह पूरी तरह तैयार नहीं है। लेकिन बेसिक डिजायन का काम पूरा कर लिया गया है।
हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि जीएसटी की दर क्या होगी, लेकिन संभावना है कि यह 17 से 18 फीसदी होगी। जीएसटी को लागू करना आसान नहीं है, क्योंकि कई सारे करों और उनके प्रशासन को एक अकेले राष्ट्रीय प्रणाली के अंतर्गत लाना होगा। हालांकि इस प्रणाली के बुनियादी संरचना का निर्माण कर लिया गया है।जैसे ही एक राष्ट्रीय प्रणाली का निर्माण कर उसे ऑनलाइन कर दिया जाएगा। उसी हिसाब से कर प्रशासकों को भी दुबारा प्रशिक्षित करना होगा।
प्राइसवाटरहाउस कूपर कंसलटेंसी के कर विशेषज्ञ कार्तिक एस और सतीश देधिया ने फरवरी 2016 में फोर्ब्स इंडिया में लिखा, “जीएसटी को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए केंद्र और राज्य दोनों के कर प्रबंधन कर्मचारियों को अवधारणा, कानून और प्रक्रिया के संबंध में ठीक से प्रशिक्षित करने की जरूरत होगी। इसके अलावा कर प्रबंधन कर्मचारियों को करदाताओं के प्रति अपनी मानसिकता और दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत होगी। इसके लिए उन्हें जीएसटी के बारे में बार-बार सीखना होगा।”
केंद्र और राज्यों दोनों ही स्तरों पर एक जीएसटी परिषद नई कर व्यवस्था को नियंत्रित करेगी। यह कर की दरों, छूट व अन्य मुद्दों को तय करेगी। इस परिषद में केंद्र के प्रतिनिधियों का एक तिहाई मत होगा। 122वें संविधान संशोधन विधेयक जिससे जीएसटी व्यवस्था लागू होगी के अनुसार, दो केंद्रीय प्रतिनिधि (वित्त मंत्री और वित्त राज्यमंत्री) के पास 33.3 फीसदी मत का अधिकार होगा। जबकि राज्यों के 29 वित्त मंत्रियों के पास बाकी के 66.7 फीसदी मत होंगे।
इंस्टीट्यूशन ऑफ चाटर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के विश्लेषण के मुताबिक केंद्र सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती केंद्र और राज्यों दोनों को जीएसटी से लाभ सुनिश्चित करना है। दूसरे शब्दों में इसका मतलब यह है कि राज्यों को अभी जितना पैसा करों से प्राप्त होता है, उतना ही या उससे ज्यादा देना होगा। संभावना है कि केंद्र राज्यों को राजस्व नुकसान की भरपाई करेगा। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के राज्य राजस्व का नुकसान झेलने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि वे पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे हैं।