लखनऊ। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इन दिनों लोकतंत्र का महापर्व मनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए हो रही इस रेस में कई दिग्गज अपने को उत्तर प्रदेश का भावी सीएम होने का दावा कर रहे हैं और चुनाव मैदान में डटे हैं। हालांकि ऐसे कई उदाहरण भी हैं कि बिना विधानसभा चुनाव लड़े भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में पिछले 15 वर्षों की बात करें तो मुख्यमंत्री विधानसभा की जगह विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। आइए एक नजर डालते हैं बिना सीधा चुनाव लड़े उत्तर प्रदेश की सत्ता के शिखर पर वाले नेताओं पर
बसपा सुप्रीमों मायावती :
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का पद बिना चुनाव लड़े भी पाया जा सकता है। पिछले एक दशक से ज्यादा समय से यूपी का कोई भी सीएम जनता द्वारा नहीं चुना गया है। इसकी शुरुआत 2007 में मायावती ने की थी। तब से लेकर वर्तमान सरकारों के मुखिया विधायक नहीं बल्कि एमएलसी बन कर ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुई थीं। वर्ष 2007 में बहुजन समाज पार्टी को विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें मिली थी। ऐसे में बसपा सुप्रीमो मायावती का मुख्यमंत्री बनना तय था। मायावती ने भी उस वक्त चुनाव नहीं लड़ा था। तब उन्होंने विधान परिषद के जरिए एमएलसी बनकर सदन का रास्ता तय किया। जिसके बाद से ही यह रीति बन गई। बतौर मुख्यमंत्री मायावती यह चौथा कार्यकाल था। इससे पहले वह वर्ष 2002 और वर्ष 1997 में विधान सभा की सदस्य रहीं। वर्ष 2022 के चुनाव में भी वह मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने चुनाव लड़ने की घोषणा नहीं की है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव :
समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2012 में समाजवादी पार्टी की ओर चुनाव प्रचार की कमान अखिलेश यादव सौंपी थी। उन्हें प्रदेश सत्ता के शिखर तक पहुंचाने के लिए युवा चेहरे के रूप में पेश किया था। प्रदेश की जनता को भी अखिलेश यादव के रूप में युवा चेहरा दिखा। जो साइकिल पर घूम कर लोगों को अपनी पार्टी के मुद्दों से रूबरू करा रहा था। पहली बार एक युवक उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच आया तो जनता ने भी अपना विश्वास दिखाया और जिसका रिजल्ट सबके सामने था। उस चुनाव में सपा को सबसे ज्यादा सीटें मिली। बहुमत मिलने के बाद तय था कि अखिलेश या मुलायम में से ही कोई एक मुख्यमंत्री बनेगा। पार्टी ने सर्वसम्मति से अखिलेश का नाम बढ़ाया और मुख्यमंत्री की कुर्सी सौपी गई। उस वक्त भी वहीं पेंच था, क्योंकि अखिलेश सांसद थे। उन्होंने भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। ऐसे में अखिलेश यादव ने भी मायावती की तरह विधान परिषद के जरिये सदन का रास्ता चुना था। वह मार्च 2012 से मार्च 2017 के बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 2022 के चुनाव में भी वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। हालांकि उन्होंने चुनाव लड़ने की घोषणा की है। वह मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे।