जब हम हताश और निराश हो जाते हैं तो हमें जिदंगी का एक-एक पल चुनौतियों से भरा और बोझ सा लगने लगता है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि उम्मीद पर ही दुनियां टिकी है। जीवन मे आशा और निराशा दोनों होते हैं और हर इंसान के भीतर आशा और निराशा के बीच द्वंद चलता रहता है, इस दौरान हमारी सकारात्मक सोच ही होती है जो हमें उलझनों के बीच आशाओं की नई किरण दिखाती है। हमारी उम्मीदें हमें मुश्किल परिस्थितियों से उबार देती है। हम जानते हैं कि कोरोना महामारी की पहली और दूसरी लहर ने हमारा बहुत कुछ छीन लिया। किसी का बेटा, किसी का पति, भाई-बहन, किसी की मां, पिता और किसी के माता-पिता दोनों…यह एक ऐसी महामारी थी, जिसने बहुतों की जिंदगी असमय ही निगल ली और लाखों लोगों की जिंदगी को पटरी पर दौड़ानें वाली उससे जुड़े जीवनयापन के साधनों को तहस-नहस कर दिया। दहशत के साये में बीते दिनों को याद कर हर कोई सिहर उठता है। खैर समय के साथ एक बार फिर से पटरी पर लौट चुकी जिंदगी अब अच्छा दिन देखना चाहती है, लेकिन नये साल के आगाज के साथ कोरोना की तीसरी लहर और बढ़ती सख्ंया एक बार फिर सबकों सोचनें पर मजबूर कर रहा है। बीते सालों में लॉकडाउन के बीच कटी तनावपूर्ण जिंदगी जैसी परिस्थितियां फिर कोई नहीं चाहता है।

हम जानते हैं कि कोरोना की पहली लहर जब आई तो सिर्फ इस बीमारी के नाम ने ही सभी को दहशत में डाल दिया था। दूसरी लहर में पीडितों की मौतों से सभी सिहर उठे थे। अब तीसरी लहर आने की बात कही जा रही है। खैर डेल्टा वैरियंट के बाद ओमिक्रॉन वैरियंट बहुत तेजी से एक-दूसरे तक फैलने की बात कही जा रही है। अभी तक की स्थिति में संख्या बढ?े के साथ भयावह रूप और जानलेवा होने की जानकारी नहीं है। फिर भी हम सभी को चाहिए कि तीसरी लहर से बचने का इंतजाम अपने स्तर पर भी कर लेना चाहिए। क्योंकि कोई बीमारी या महामारी कब जानलेवा बन जाये कहा नहीं जा सकता। हमें इसलिए भी खुद को भाग्यशाली मानना चाहिए कि हम पहली और दूसरी लहर में कोरोना का शिकार होने से बच गए हैं। कोरोना की तीसरी लहर को हमें अपनी हार न मानकर एक चुनौती और सीख के रूप में देखना चाहिए क्योंकि पहली और दूसरी लहर ने हमें मौका भी तो दिया है कि हम कैसे किसी बीमारी से बचने के लिए उपाय करें ? हम कैसे लॉकडाउन में रहे ? हम कैसे दूरियों को मेंटेन करे और स्वच्छता को अपनाते हुए शरीर को फिट रखने का उपाय करें ?

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम ही वे लोग है, जो कोरोना को अपनी लापरवाही की वजह से एक-दूसरे तक फैलाते रहे। हम ही वे लोग है, जो शासन-प्रशासन को लॉकडाउन के लिए मजबूर कर देते हैं और अपनी लापरवाही से ही बहुत से उन लोगों का भी रोजी-रोटी छीन लेते हैं जो रोज कमाते खाते हैं। हम सभी जानते हैं कि लॉकडाउन सभी के लिए एक बड़ी मुसीबत के समान है। पटरी पर दौड़ती अर्थव्यस्था को चरमराने से लेकर विकास में बड़ा बाधक भी है। हमारे सामान्य जनजीवन से देश और राज्य की अर्थव्यवस्था जुड़ी हुई है। दुकान से सामान खरीदने से लेकर, होटल में रूकने, खाने और बस-रेल की यात्राओं, सिनेमा आदि में हम सरकार को जीएसटी के रूप में टैक्स देते हैं। यह सभी राशि देश के विकास में खर्च होती है। विगत दो साल में कोरोना की वजह से हुई लॉकडाउन ने आर्थिक गतिविधियों को बहुत नुकसान पहुचाया। छोटे-छोटे अनेक उद्योग धंधे बंद हो गए। व्यापार शून्य होने से लाखों लोग बेरोजगार भी हुए। लॉकडाउन से सभी को कुछ न कुछ नुकसान जरूर उठाना पड़ा।

अब जबकि तीसरी लहर का खतरा मंडराया हुआ है। सभी के भीतर लॉकडाउन को लेकर चचार्एं होने लगी है। शासन-प्रशासन भी हर पहलुओं पर नजर बनाए हुए हैं। युद्धस्तर पर कोविड अस्पताल और वार्ड और बेड की अतिरिक्त व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है। उनकी कोशिश है कि सभी कोरोना गाइडलाइन का पालन कर कोरोना को फैलने से रोकने में सहयोग करें। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में माना है। उन्होंने बैठक लेकर समीक्षा लेना भी प्रारंभ कर दिया है और कोरोना से डरने की बजाय सभी को सतर्क रहने कहा है।

हम सभी को भी चाहिए कि मुख्यमंत्री की बातों पर गौर करें और कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कर अपने शहर या राज्य में लॉकडाउन जैसी समस्या को उत्पन्न न करें। हम जानते हैं कि पहली और दूसरी लहर में लॉकडाउन के बीच कोरोना का जब खौफ था, तब हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अप्रवासी मजदूरों को लाने और अन्य राज्य के मजदूरों को उनके प्रदेश भेजने में कोई चूक या देरी नहीं की थी। भीषण धूप और गर्मी में राज्य के सीमावर्ती जिलों में छांव, खान-पान से लेकर नंगे पांवों में चप्पलें, मजदूरों से लेकर छात्रों के लिए रेल और बसों की व्यवस्था, आॅक्सीजन सिलेण्डरों के साथ प्रत्येक जिलों में भोजन वितरण तथा राशन दुकानों से खाद्यान की अतिरिक्त व्यवस्था सुनिश्चित की। गांव-गांव मनरेगा के माध्यम से मजदूरों को काम देकर, वनवासियों से वनोपज खरीदकर और राजीवगांधी किसान न्याय योजना, गोधन न्याय योजना के माध्यम से किसानों के जेब में पैसे डाले। इन सभी से छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। सामुदायिक, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पतालों में सुविधाएं बेहतर करने के साथ राज्य सरकार ने स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने तथा अन्य सुविधाओं के लिए बजट राशि भी बढ़ाई। कोरोना प्रबंधन की दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार का प्रयास अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर ही था।           

अत: हम समझ सकते हैं कि बुरे वक्त में सरकार हमारे साथ है। हमें भी चाहिए कि कोरोना से निपटने के लिए हम भी सरकार का सहयोग करे। जहां तक संभव है और आसान है वहां हम अपनी जिम्मेदारी का परिचय देते हुए जीवन के लिए जरूरी उपायों को अपनाएं। हम नियमित रूप से मास्क पहने। एक-दूसरे से 6 फीट की दूरी को अपनाते हुए भीड़ का हिस्सा न बनें। अनावश्यक घर से बाहर न निकले। सेनेटाइजर का इस्तेमाल करे और नियमित रूप से हाथ धोते रहें। कहीं भी इधर-उधर न थूके। टीका यदि नहीं लग पाया है तो दोनों डोज जरूर लगवा लें। सर्दी, खासी, बुखार या दर्द जैसी कोई लक्षण दिखे तो नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र में अपना उपचार कराएं। कोरोना का लक्षण सामने आने पर चिकित्सकों के अनुसार दवाइयां लें और एक जिम्मेदार नागरिक बनकर होम आइसोलेशन में या अस्पताल में रहकर पूरी तरह ठीक होने तक किसी के सम्पर्क में न आये। शादी, जन्मदिन, रैली, सभा जैसे कार्यक्रमों में भीड़ न जुटाए। जीवन अनमोल है। खुशियां मनाने के और भी बहुत मौके आएंगे। आपकी सावधानी और समझदारी न सिर्फ आपकों और आपके परिवार को कोरोना होने से बचायेगी। सजग होकर व्यापारिक गतिविधियों का संचालन, परिवहन, निर्माण सहित विकास कार्यों में भी अपना योगदान सुनिश्चित कर सकते हैं। इससे देश के अर्थव्यवस्था पर न तो असर होगा और किसी की रोजी-रोटी छीनने या रोजगार जाने का खतरा भी उत्पन्न नहीं होगा। हम अपने राज्य और देश के विकास में अपनी भागीदारी तो सुनिश्चित कर पायेंगे ही, लॉकडाउन जैसी समस्या जो हमें डरा रही है उससे भी छुटकारा पा सकते हैं।