भोपाल । मध्य प्रदेश के इंदौर और भोपाल में उत्तर प्रदेश की दर्ज पर पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होगा। उत्तर प्रदेश के चार शहरों में यह सिस्टम लागू हो चुका है। जहां पर पुलिस कमिश्नर (सीपी) की कमान अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के अफसरों को दी गई है, यहां पर पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) स्तर के अफसर को इसमें जगह नहीं दी गई है।
उत्तर प्रदेश में करीब पौने दो साल पहले गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) में पहली बार यह सिस्टम शुरू किया गया। इस सिस्टम में सीपी एडीजी रैंक के अफसर को बनाया गया। यहां पर ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर (जेसीपी) का पद नहीं रखा गया। पुलिस कमिश्नर के बाद एडिशनल पुलिस कमिश्नर (एसीपी) का पद यहां पर हैं, इस पद पर डीआईजी रैंक के अफसरों को पदस्थ किया गया है। एक को अपराध एवं कानून व्यवस्था का जिम्मा दिया गया, जिन्हें एसीपी एलएण्डओ कहा जाता है। जबकि दूसरे डीआईजी को मुख्यालय की जिम्मेदारी दी गई। उन्हें एसीपी हेडक्वार्टर कहा जाता है। इसके बाद पुलिस अधीक्षक रैंक के अफसरों को डिप्टी कमिश्नर आॅफ पुलिस (डीसीपी) बनाया गया है। यहां पर डीसीपी के पद पर सात अफसर पदस्थ हैं। इसके बाद एडिशनल डीसीपी के पद पर एएसपी रैंक के अफसर पदस्थ हैं। इसके बाद अस्सिटेंट डीसीपी का पद होगा, जिस पर सीएसपी रैंक के अफसर तैनात हैं। यूपी में नोएडा के अलावा लखनऊ, बनारस और कानपुर में यह सिस्टम लागू है।
इंदौर और भोपाल में भी ठीक इस तरह का ही सिस्टम और इसी रैंक के अफसरों को पदस्थ किया जाएगा। दोनों शहरों में एडीजी रैंक के अफसर सीपी होंगे। डीआईजी रैंक के दो-दो अफसर एसीपी के पद पर पदस्थ हो सकते हैं। इसमें एक के पास अपराध एवं कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी होगी, जबकि दूसरे अफसर के पास हेडक्वार्टर का चार्ज होगा। एसीपी हेडक्वार्टर के पास तबादला और पोस्टिंग के अधिकार के साथ अन्य अधिकार होंगे। वहीं डीसीपी रैंक के लिए भोपाल और इंदौर को तीन हिस्सों में किया जा सकता है। इस पर पर पुलिस अधीक्षक रैंक के अफसरों को पदस्थ किया जाएगा। भोपाल और इंदौर के सभी हिस्सों में एक-एक डीसीपी को पदस्थ किया जाएगा। वहीं यातायात, सायबर क्राइम, क्राइम ब्रांच, महिला अपराध की जिम्मेदारी भी एक या दो अलग-अलग डीसीपी को दी जा सकती है। इन दोनों शहरों में डीसीपी रैंक के चार अफसर पदस्थ हो सकते हैं। डीसीपी के अंडर में एडिशनल डीसीपी आएंगे। तीनों डीसीपी को चार से पांच एडिश्नल डीसीपी दिए जा सकते हैं। एडिशनल डीसीपी के अंडर अस्सिटेंट डीसीपी आएंगे। इसके बाद एसएचओ होंगे।
बताया जाता है जो प्रस्ताव तैयार हुआ है, उसमें भोपाल और इंदौर नगर निगम सीमा का पूरा क्षेत्र इस सिस्टम में शामिल होगा। अभी कई थानों की सीमा नगर निगम के साथ ग्रामीण क्षेत्र में भी है, इससे थानों की सीमाओं को लेकर कोई विवाद नहीं होगा। इसमें नगर निगम सीमा के मामले सुनवाई के लिए इस क्षेत्र के पुलिस अफसर के पास आएंगे, जबकि ग्रामीण क्षेत्र के मामले उस क्षेत्र के एसडीएम के पास जाएंगे।
सूत्रों की मानी जाए तो जो प्रस्ताव तैयार किया गया है उसमें पुलिस अफसरों ने इस सिस्टम में सिर्फ मजिस्ट्रियल पॉवर ही मांगे हैं। जबकि पुलिस कमिश्नर सिस्टम में मजिस्ट्रियल पॉवर के अलावा लायसेंस के भी अधिकारी मिलते हैं। हालांकि लायसेंस के अधिकार अधिंकाश राज्यों में पुलिस के पास इस सिस्टम में भी नहीं दिए गए हैं। प्रस्ताव में रासुका, एनएसए, जिला बदर, कर्फ्यू लगाना, धारा 144 लागू करना, धरना प्रदर्शन की अनुमति देना, बल प्रयोग करना, गोली चलाने के आदेश देना आदि शामिल किए गए हैं। अभी दंडात्मक कार्रवाई का अधिकार प्रशासनिक अफसरों के पास है। पुलिस कमिश्नर सिस्टम में यह अधिकार अब पुलिस अफसरों के पास आ जाएंगे। ये अधिकारी पुलिस कमिश्नर से लेकर अस्सिटेंट पुलिस कमिश्नर तक पहुंच जाएंगे।