जबलपुर।  मध्य प्रदेश में पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण के मामले में सरकार के ताजा कदम के कारण मामला और उलझ गया। सरकार ने हाई कोर्ट द्वारा स्थगित किए गए भर्ती प्रकरणों को छोड़कर शेष सभी में 27% ओबीसी आरक्षण के आदेश जारी किए थे। इस आदेश को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।

महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव द्वारा सरकार को अभिमत दिया गया था कि हाईकोर्ट ने जिन मामलों को स्थगित किया है उन्हें छोड़कर शेष सभी प्रकार की भर्ती एवं प्रवेश प्रक्रिया में सरकार आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र है। इसके आधार पर सरकार में 2 सितंबर 2021 को हाई कोर्ट द्वारा स्थगित किए गए भर्ती प्रकरणों को छोड़कर शेष सभी में 27% ओबीसी आरक्षण के आदेश जारी कर दिए थे। हाई कोर्ट में सरकार के इस आदेश को चुनौती दी गई।

यूथ फार इक्वेलिटी की ओर से अधिवक्ता सुयश ठाकुर ने पक्ष रखा था। इस मामले को भी हाईकोर्ट ने स्वीकार करते हुए पूर्व के प्रकरण से लिंकअप कर दिया है। इस मामले की सुनवाई भी 7 अक्टूबर को होगी। जिन मामलों में सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तारीख लगी थी। उन सभी मामलों में आज कोई कार्यवाही नहीं हुई। अगली तारीख 7 अक्टूबर 2021 निर्धारित की गई है।

विशेष परिस्थितियों में 50% से अधिक आरक्षण दे सकते हैं: शिवराज सरकार
सरकार द्वारा पेश किए गए जवाब में पहले ही बताया जा चुका है कि एमपी में 50% से अधिक ओबीसी की आबादी है। इनके सामाजिक, आर्थिक और पिछड़ेपन को दूर करने के लिए 27% आरक्षण जरूरी है। ये भी हवाला दिया कि 1994 में इंदिरा साहनी केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने विशेष परिस्थितियों में 50% से अधिक आरक्षण देने का प्रावधान रखा है।

मध्यप्रदेश की परिस्थितियां विशेष नहीं है: आरक्षण विरोधी याचिकाकर्ता
उधर, हाईकोर्ट में सरकार के 27% आरक्षण को चुनौती देने वाली छात्रा असिता दुबे सहित अन्य की ओर से पक्ष रख रहे अधिवक्ता आदित्य संघी कोर्ट को बता चुके हैं कि 5 मई 2021 को मराठा रिजर्वेशन को सुप्रीम कोर्ट ने 50% से अधिक आरक्षण होने के आधार पर ही खारिज किया था। ऐसी ही परिस्थितियां एमपी में भी है। यही जजमेंट सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में इंदिरा साहनी के मामले में भी दिया था।

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