नई दिल्‍ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति एन वी रमना ने शनिवार को कहा कि विधायिका को कानूनों पर फिर से विचार करने और उन्हें समय और लोगों की जरूरतों के अनुरूप सुधारने की जरूरत है ताकि वे व्यावहारिक वास्तविकताओं से मेल खा सकें। सीजेआई ने कटक में ओडिशा राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के नए भवन का उद्घाटन करते हुए कहा कि संवैधानिक आकांक्षाओं को साकार करने के लिए कार्यपालिका और विधायिका को साथ-साथ काम करने की आवश्यकता है। जस्टिस रमना ने कहा कि मैं इस बात पर जोर देता हूं कि हमारे कानूनों को हमारी व्यावहारिक वास्तविकताओं से मेल खाना चाहिए। कार्यपालिका को संबंधित नियमों को सरल बनाकर इन्हें लागू कराना चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कार्यपालिका और विधायिका के लिए संवैधानिक आकांक्षाओं को साकार करने में एक साथ कार्य करना महत्वपूर्ण था।  

सीजेआई ने कहा कि ऐसा करने पर ही न्यायपालिका कानून-निर्माता के रूप में कदम रखने के लिए मजबूर नहीं होगा और केवल कानूनों को लागू करने और व्याख्या करने के कर्तव्य के साथ छोड़ दिया जाएगा। आखिर में यह देश के तीन अंगों का सामंजस्यपूर्ण कामकाज है जो न्याय के लिए प्रक्रियात्मक बाधाओं को दूर कर सकता है। यह कहते हुए कि भारतीय न्यायिक प्रणाली दोहरी चुनौतियों का सामना कर रही है, सीजेआई ने कहा कि पहला यह कि न्याय वितरण प्रणाली का भारतीयकरण करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि आजादी के 74 साल बाद भी, पारंपरिक और कृषि प्रधान समाज, जो परंपरागत जीवन शैली का पालन कर रहे हैं, अदालतों का दरवाजा खटखटाने में झिझक महसूस करते हैं। उन्होंने कहा, हमारे न्यायालयों की प्रथाएं, प्रक्रियाएं, भाषा उन्हें अलग लगती हैं। जटिल भाषा और न्याय वितरण की प्रक्रिया के बीच आम आदमी अपनी शिकायत की नियति को भूल जाता है। ऐसे हालात में न्याय की उम्मीद पाले बैठा व्यक्ति इस प्रणाली में खुद को बाहरी मान लेता है।

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