दिगंबर जैन समाज 21 सितंबर को सामूहिक क्षमावाणी पर्व मनाएगा। वक्त के साथ क्षमावाणी मनाने का तरीका भी बदलता जा रहा है। अब कई लोग आपस में मिलने के बजाए क्षमावाणी के सोशल मीडिया पर पोस्टर बनाकर और मैसेज भेजते है, जिसे दिगंबर जैन महाराज गलत बताते है। उनका कहना है कि क्षमावाणी, वाणी के साथ होती है। आपसी शब्दों के साथ होती है। मोबाइल पर तो सिर्फ प्रचार होता है।
आचार्य 108 डॉ. प्रणाम सागर महाराज ने कहा कि क्षमा शब्दों से नहीं भावों से होती है। क्षमा वाणी से नहीं स्वभाव से होती है। जिसके जीवन में क्षमा गुण है, उसकी वाणी ही क्षमावाणी है। वर्तमान परिस्थिति में हम क्षमावाणी नहीं एक-दूसरे को माफ करते है। अपने से ताकतवर, बलशाली के सामने हाथ जोड़ते है और कमजोर के सामने अहंकार से भर जाते है। जैन संप्रदाय हिंसा नहीं करता, हथियार नहीं उठाता ,हड़ताल नहीं करता, सरकारी नियमों का उल्लंघन नहीं करता, कभी किसी से विवाद नहीं करता। जहां क्षमा है, वहां हर व्यक्ति जुड़ता है। जोड़ने की कला का नाम है क्षमावाणी। उन्होंने कहा बाण चलाने से शरीर पर घाव होता है। बाण एक बार चलता है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। यदि हमारी गलत वाणी होती तो व्यक्ति की मृत्यु बार-बार होगी। हम संत है, हमारी मुद्रा को देख कई लोग अपशब्द भी बोलते है, लेकिन हम उन्हें क्षमा कर देते है।
डॉ. प्रणाम सागर महाराज ने कहा कि वर्तमान काल के प्रभाव से व्यक्ति मोबाइल का इस्तेमाल कर रहा है। सोशल मीडिया पर पोस्टर बनाकर डालना, मैसेज करना क्षमावाणी नहीं है। पोस्टर वाला तो सिर्फ एक प्रचार है। पोस्टर-मैसेज भेजने से क्षमा नहीं होती है। पोस्टर-मैसेज भेजना तो मोबाइल वाणी हो गई हैं। क्षमावाणी, वाणी के साथ होती है, आपसी शब्दों के साथ होती है। मोबाइल में शब्द तो एक जैसे टाइप होते है। जब तक हमारे बोलने का तरीका सामने वाले को समझ नहीं आएगा, तब तक क्षमावाणी नहीं होगी। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान जज है और संत वकील। यदि आपने सालभर कोई गलती कि है तो आप संत रूपी वकील के सामने आए। तब वह आपकी बात को भगवान रूपी जज के पास पहुंचा देगा और आपका निर्णय अपने आप हो जाएगा।
महाराज ने कहा कोरोना काल चल रहा है। मोबाइल में लिखने से अच्छा है कि मोबाइल के माध्यम से वीडियो कॉलिंग कर लें। इसमें एक-दूसरे का चेहरा देखकर बात कर सकते है। क्योंकि कोरोना काल में गर्वमेंट के नियमों का भी पालन करना है। कई जगह परिवार के लोग विदेश में है तो वीडियो कॉलिंग कर सकते हैं। उन्होंने कहा सात दिन का वक्त क्षमावाणी का होता है। इन सात दिनों में आपस में मिलकर क्षमावाणी का पर्व मना सकते है। उन्होंने जनता को संदेश देते हुए कहा कि आगामी दिनों में श्राद्ध शुरू हो रहे है। इसमें पीड़ित, जरुरतमंद, दुखी या अनाथ की मदद करें। जरुरतमंदों को 15 दिनों तक भोजन कराए। यह पूर्वजों की सबसे बड़ी शांति है।
भौतिकता की चकाचैंध में व्यक्ति कुछ भी करता है – विमदसागर महाराज मयूर पिच्छिधारी प.पू आचार्य 108 विमदसागर महाराज ने कहा कि क्षमावाणी महोत्सव एक बहुत बड़ा धर्म हैं। इससे बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता हैं। जिस प्रकार हम मोबाइल पर लड्डू देख सकते है, लेकिन उसका स्वाद नहीं ले सकते। उसी प्रकार मोबाइल पर मैसेज कर क्षमा मांगने से हम क्षमा से संतुष्ट नहीं हो सकते है। क्षमा वाणी में नहीं प्राणी में आना चाहिए। क्षमा कायरों का धर्म नहीं है। पूजा-पाठ, अगरबत्ती लगाना, जल चढ़ाना कोई भी कर सकता है, पर क्षमा करना हर व्यक्ति नहीं कर सकता। इसलिए कहा है क्षमा वीरों का आभूषण है। मांगना बहुत सरल है, लेकिन किसी को क्षमा करना बहुत कठिन है। भौतिकता की चकाचैंध में व्यक्ति कुछ भी करता है। व्यक्ति भगवान की पूजा-अभिषेक सभी मोबाइल में देख लेता है, लेकिन उसमें भाव नहीं आते है। भौतिकता की दुनिया में युग बदल रहा है। मोबाइल से बातचीत हो सकती है, लेकिन आनंद नहीं मिल सकता। आनंद लेने के लिए हमें व्यक्ति से प्रत्यक्ष होना पड़ेगा। मोबाइल से क्षमा याचना, पूजा-पाठ नहीं होता है।
महाराज ने कहा कोरोना की स्थिति में मोबाइल साधन है। अगर कोरोना काल है तो इन वस्तुओं का उपयोग कर सकते है, पर जहां-जहां हम पहुंच सकते है वहां जाना चाहिए। वीडियो कॉलिंग परिस्थिति में कर सकते है। कोई दूर है या चलने में अक्षम है तो यह उनके लिए आधार है, पर साक्षात का पुण्य अलग हैं। पुण्य लाभ तो साक्षात से ही मिलेगा। मोबाइल में कई प्रकार की चीजें आती है। इसलिए मोबाइल पर विनय नहीं कर सकते है, पैर नहीं पढ़ सकते हैं।