भोपाल। क्या अनुसूचित जाति के किसी नेता को राज्यसभा में भेजना भाजपा की मजबूरी हो गई है ….? राजनीतिक हलकों में यह प्रश्न चर्चा का विषय बना हुआ है और वर्तमान परिस्थितियां भी कुछ इसी तरह के संकेत देती दिख रही है।

देश के 5 राज्यों के 6 राज्यसभा सीटों के लिए आगामी 23 सितंबर तक नामांकन दाखिल किए जाएंगे और जरूरी हुआ तो 4 अक्टूबर को मतदान के साथ उसी दिन परिणाम भी सामने आ जाएंगे। इसमें मध्य प्रदेश से भी एक सदस्य का चुनाव किया जाना है जो कर्नाटका के राज्यपाल बने पूर्व केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत के 7 जुलाई को इस्तीफा देने के बाद रिक्त हुआ है। चुने गए सदस्य का कार्यकाल 2 अप्रैल 24 तक रहेगा। मध्य प्रदेश विधानसभा में मौजूदा दलीय स्थिति को देखते हुए भाजपा प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित है यदि कांग्रेस अपनी हार सुनिश्चित देखकर प्रत्याशी घोषित नहीं करती तो निर्विरोध निर्वाचन भी हो सकता है। प्रदेश में राज्यसभा की कुल 12 सीट है जिनमें एक रिक्त है ।  शेष 11 सीटों में से एक पर भी भाजपा की ओर से अनुसूचित जाति वर्ग के नेता को राज्यसभा का सदस्य नहीं बनाया गया है। गहलोत खुद अनुसूचित जाति वर्ग से सदस्य रहे हैं। ऐसी दशा में भाजपा की सबसे बड़ी मजबूरी यही है कि यह सीट पुनः इसी वर्ग के किसी नेता को दी जाए। वैसे भी भाजपा मौजूदा परिस्थितियों में अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग को पार्टी के साथ जोड़ने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

अजा के जटिया और मालवीय
अनुसूचित जनजाति के दो नेता अभी मध्यप्रदेश के कोटे से राज्यसभा के सदस्य हैं। ऐसी दशा में अनुसूचित जाति वर्ग को साधने के लिए राज्यसभा की यह रिक्त सीट उन्हें दी जा सकती है। किसी अन्य राज्य के भाजपा नेता को भाजपा से चुनाव लड़ाने की संभावना नहीं के बराबर है क्योंकि पूर्व से ही एमजे अकबर और धर्मेंद्र प्रधान को मध्यप्रदेश के कोटे से राज्यसभा में भेजा गया है।अनुसूचित जाति के भाजपा नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया और उज्जैन के पूर्व सांसद प्रो. चिंतामन मालवीय के नाम की चर्चा सबसे ज्यादा चल रही है । दोनों ही मालवा अंचल के कद्दावर भाजपा नेता माने जाते हैं । जटिया 5 बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं । जबकि चिंतामन मालवीय को किन्ही कारणों से इस बार उज्जैन लोकसभा से पार्टी टिकट पुनः नहीं दिया गया था ।

विजयवर्गीय भी दावेदार
यदि किन्हीं कारणों से यह पद अनुसूचित जाति के नेता को नहीं दिया जाता तो सबसे ज्यादा प्रबल संभावना वाले नेता कैलाश विजयवर्गीय को माना जाता है । वह अभी पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री और पश्चिम बंगाल के प्रभारी भी है किंतु किसी भी सदन के सदस्य नहीं है ।  पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर उनके प्रभाव और गृह मंत्री अमित शाह से करीबी रिश्ते को देखते हुए यदि उन्हें संसद के उच्च सदन का सदस्य बनने का अवसर दिया जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी । इस बीच पूर्व सांसद कृष्ण मुरारी मोघे और अशोक अर्गल का नाम भी इस रेस में शामिल माना जा रहा है, किंतु पार्टी की ओर से अभी इस तरह के कोई संकेत नहीं मिले हैं । ऐसी दशा में प्रत्याशी चयन को लेकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा शीघ्र ही कोई बैठक रखकर विचार विमर्श किया जा सकता है. भाजपा में जिस तरह से उम्र दराज नेताओं को पार्टी की मुख्यधारा से अलग करने का क्रम चल रहा है उससे इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रदेश के किसी युवा नेता को राज्यसभा के लिए अवसर दिया जाए।

कांग्रेस में अनिश्चय की स्थिति
भविष्य में होने वाले खंडवा लोक सभा के साथ ही 3 विधानसभा उपचुनाव जीतने का पुरजोर कोशिश करने के साथ ही 2023 में पुनः सरकार बनाने का सपना देख रही कांग्रेस राज्यसभा चुनाव को लेकर अभी तक गंभीर दिखाई नहीं दे रही है। संख्या बल में कमजोर होने के कारण ऐसा माना जा रहा है। आने वाले 23 सितंबर तक नामांकन दाखिल किया जाना है किंतु अभी तक राज्यसभा चुनाव को लेकर ना कोई बैठक हुई है और ना ही कोई आपसी विचार विमर्श हुआ है। पार्टी नेता सब कुछ पीसीसी चीफ और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पर छोड़ चुके हैं। उनके द्वारा भी अभी तक कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया गया है। भाजपा की जीत सभी एंगल से सुनिश्चित है । ऐसी दशा में कांग्रेस सिर्फ किसी को बलि का बकरा बनाकर सांकेतिक रूप से चुनाव लड़ सकती है ।

विधानसभा में दलीय स्थिति

  • भाजपा                   – 125
  •  कांग्रेस                   – 95
  •  निर्दलीय                  – 4
  • बसपा                       – 2
  • सपा                          – 1
  •  रिक्त                         -3

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