जबलपुर। मध्यप्रदेश के जबलपुर के दयोदय तीर्थ तिलवारा में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने अपने गुरु आचार्य ज्ञान सागर महाराज को भावुकता से याद किया। उन्होंने कहा कि गुरु जी ने हमें जो शिक्षा दी उसके कारण ही हम जैसा अनगढ़ शिष्य धर्म मार्ग पर चल पाया। आप सभी से भी निवेदन है कि अपने गुरु को कभी भी भूले नहीं, अपनी बुरी आदतों को गुरु के माध्यम से सुधारने का प्रयास करें। गुरुजी ने अंतिम सांस तक ज्ञान दान का कार्य किया है। गुरुजी ने कभी हमारी कोई सेवा स्वीकार नहीं की सदैव उनका ध्यान हमारे मन, वचन एवं काया की शुद्धि की ओर रहता था। उसी का परिणाम है कि आज 50 वर्ष बाद भी वह मेरे सामने हैं, ऐसा एहसास और अनुभव मुझे होता है, उनके जीवन का दर्शन बहुत दुर्लभ है, स्मरण मात्र होते रहते हैं, हमारा जो कुछ भी है सब कुछ उनके प्रति अर्पण है। गुरुजी एक ऐसा दर्पण थे जिसमें हम अपने आप को देखने का अभ्यास आज भी करते हैं। गुरु रूपी दर्पण में हमें अपने आप को देखने का पुरुषार्थ करते रहना चाहिए यही शिष्य का कर्तव्य है।
मां ही जीवन की पहली गुरु है 9 माह तक मां अपने गर्भ में शिशु का सिर्फ पालन ही नहीं करती किंतु भविष्य में, जीवन काल में जो संस्कार उसके लिए आवश्यक है वह सब उसे देती है वह पहली गुरु है। वह शिशु को आहार, सांस और अपनी भावनाओं के माध्यम से ज्ञान देती रहती है। इसलिए गर्भ में ही उसके लिए इस प्रकार पर्याप्त शिक्षा सामग्री मिल जाती है। वह अपने जीवन के साथ नवजीवन को भी अपने जीवन से महत्वपूर्ण समझती है, इसलिए यह सर्वप्रथम मनुष्य जीवन का प्रथम पाठ होता है। हमें अपने असंयम रूपी आग की नदी को पार करना है। आग से नहीं डरना किंतु राग से डरना है।
आज विदेशों में परिस्थितियां बहुत विपरीत है, भारत में तो बहुत संस्कार है, संस्कारों के कारण वह अपनी प्राचीन संस्कृति को भूल नहीं पाया है लेकिन इन संस्कारों के ऊपर धूल अवश्य पड़ती जा रही है उसे साफ करने का कर्तव्य हम करें तभी भविष्य में सुधार होगा। अवकाश के दिन शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है शिक्षकों में अवकाश का भाव कभी भी नहीं आना चाहिए क्योंकि यदि आप शिक्षक बन गए हैं तो आपके श्रेष्ठ विचार और आपकी योग्यता का प्रकाश चारों ओर बिखरना चाहिए, बच्चों का भविष्य बनाने का भाव हमेशा करते रहना चाहिए ।