जबलपुर। मध्यप्रदेश के जबलपुर में दयोदय तीर्थ तिलवारा में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने बुधवार को प्रवचन में कहा कि आप जो करते हैं, जो बोलते हैं, जो सुनते हैं उसे जब पुनः याद करते हैं तभी अच्छाई और बुराई का ज्ञान होता है। अकेले में याद करते रहेंगे तभी आप त्रुटि का पश्चाताप कर सकते हैं, जिस तरह आप अपने व्यवसाय में किए गए प्रत्येक लेनदेन का हिसाब रखते हैं, कुछ याद करते हैं कुछ लिखकर याद रखते हैं, उसी तरह आपको अपने किए गए कार्यों को भी याद करना चाहिए। स्मृति के सहारे ही मोक्ष मार्ग को प्राप्त कर सकते हैं। सुबह उठते ही हमें प्रतिक्रमण करना चाहिए, प्रतिक्रमण का आशय है अपनी भूलों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगना। हमें तीन समय ईश्वर की आराधना करनी चाहिए, कर्म सिद्धांत के अनुसार ऐसे कर्म किए जाएं जो याद रखे जा सकें। जिस प्रकार हम बर्तन में रखी हुई वस्तु को मिलाने के लिए बार-बार हिलाते हैं, उसी तरह हमें अपने कर्म- अनुभव को भी बार-बार हिलाते रहना चाहिए, याद रखना चाहिए कि हमसे क्या भूल हुई है।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में यह दोष है कि हम 6 माह या 3 माह पढ़कर सेमेस्टर परीक्षा दे देते हैं और वापस उस पाठ को फिर कभी नहीं देखते यानी पिछला कुछ भी याद नहीं करते। जबकि हमें पढ़े गए पाठ की पुनरावृत्ति करनी चाहिए ताकि विषय को याद रखा जाए और समझा जाए। आचार्य श्री कहते हैं कि बुद्धि को चलाने के लिए उसे धारदार बनाने के लिए बार-बार बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए। आप जितनी बुद्धि को मांजते हैं उतनी ही आपकी बुद्धि विलक्षण होती है इसके लिए स्वाध्याय करना और धर्मोपदेश का श्रवण करना, अध्ययन करना आवश्यक है। बच्चों को समझना चाहिए कि पेपर परीक्षा के समय पुराना पढ़ा भी पुनः याद करना चाहिए। हम स्वाध्याय करे, चिंतन करें, याद रखें तभी हमारे विचारों में निर्मलता आएगी। स्वाध्याय में अनुप्रेक्षा सबसे महत्वपूर्ण कारक है जिस तरह बच्चों को बार-बार पुनरावृति कराने से उसकी भ्रांति दूर होती हैं और वह समझदार बनता है। अपनी पुरानी गलतियों को याद रखो ताकि भविष्य में गलती ना हो।

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