इंदौर. इंदौर में कृष्ण का दुर्लभ मंदिर है. इसमें बाल गोपाल यशोदा मैया की गोद में विराजमान हैं. माता यशोदा के साथ उनका ये संभवत: विश्व का एकमात्र मंदिर है. इस मंदिर के बारे में बड़ी मान्यता है. संतान प्राप्ति की कामना के साथ महिलाएं यहां माता यशोदा की गोद भरती हैं.

कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर इंदौर के उस मंदिर के बारे में जानना रोचक होगा जहां कृष्ण अपने बाल स्वरूप में यशोदा मैया की गोद में बैठे हैं. ये मंदिर राजबाड़ा में है. मां यशोदा कान्हा को अपनी ममता की छाया में समेटे हुए हैं. मंदिर दो सौ तीस साल पुराना है. ख़ास बात ये है कि कृष्ण जैसे पुत्र के लिए महिलाएं यशोदा माता की गोद भरती हैं.

इंदौर के ह्रदय स्थल कहे जाने वाले राजवाड़ा के यशोदा मंदिर में माता की गोद भरने की परम्परा है. ऐसी मान्यता है कि यहां निसंतान महिलाएं जन्माष्टमी के दिन माता की गोद भरती हैं तो उनकी मनचाही संतान मिलने की मन्नत माता पूरी करती हैं. कहा जाता है कि जन्माष्टमी के दिन माता बेहद प्रसन्न रहती हैं, इसलिए वो यहां आने वाली किसी भी महिला को निराश नहीं करती हैं. इस मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ ही गोद भराई रस्म की जाती है. अगर बेटा चाहिए हो तो गोद भराई में यशोदा माता की झोली में गेहूं के साथ नारियल और पुत्री की प्राप्ति के लिए चावल के साथ नारियल और सुहाग का सामान डाला जाता है.

मंदिर में नंदबाबा और राधा-कृष्ण की प्रतिमाएं भी हैं. मान्यता है मंदिर में सच्चे मन से मन्नत मांगने पर माता यशोदा श्रीकृष्ण जैसे पुत्र से गोद भरने का आर्शीवाद देती हैं. संतान प्राप्ति के बाद महिलाएं पूजा करने यहां पहुंचती हैं.

यशोदा मंदिर के पुजारी बताते हैं कि उनके परदादा ने करीब 230 साल पहले इस मंदिर की स्थापना की थी. उन्हें यशोदा माता का मंदिर बनाने की प्रेरणा उनकी माताजी ने ये कहकर दी थी कि कन्हैया को तो सारा संसार पूजता है, लेकिन उनको पालने पोसने वाली यशोदा मैया को सब भूल गए हैं. माताजी की ये प्रेरणा सुनकर मंदिर स्थापित करवाया. पुजारी बताते हैं कि उनके परदादा ने यशोदा माता की मूर्ति जयपुर में बनवायी थी. मूर्ति को जयपुर से बैलगाड़ी से लाने में 28 दिन का वक्त लगा था.

मंदिर में स्थापित मूर्ति अद्भुत है. मां यशोदा कान्हा को अपने आंचल में समेटे हुए हैं. यशोदा मैया की गोद में कृष्ण का बाल रूप विराजमान हैं, जिनका रोज़ाना साज-श्रृंगार होता है. इनके अलावा मंदिर में नंदबाबा और राधा-कृष्ण की मूर्तियां भी हैं. मंदिर की खास बात ये भी है कि यहां यशोदा माता की प्रतिमा बड़ी है और नंद बाबा की छोटी. कृष्ण जन्माष्टमी के दिन से यहां तीन दिनी कृष्ण जन्मोत्सव शुरू होता है. लेकिन पिछले 2 साल से कोरोना के कारण उत्सव एकदम सिमट कर रह गया है.

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