ग्वालियर। मध्यप्रदेश के चंबल संभाग के भिण्ड जिले में छोटा परिवार, सुखी परिवार की जिम्मेदारी महिलाओं के जिम्मे ही कर दी गई है, इसमें पुरुषों के ऊपर कोई जवाबदारी नहीं है। पिछले आंकडे बताते हैं कि पुरुष नसबंदी में भिण्ड 49वें पायदान पर है। पुरुष प्रधान समाज में सरकारी प्रयास और प्रलोभन भी इसमें कारगर सावित नहीं हो पा रहा है।
जागरुकता का अभाव और औरतों के प्रति संकुचित रवैया ही कहा जाएगा कि बढती हुई आबादी को रोकने की जद्धोजहद में भी पुरुष कहीं आगे नजर नहीं आ रहे है। महिलाए अपनी खराब सेहत के वाबजूद नसबंदी कराने को मजबूर है। बीते 10 साल के आंकडे बताते हैं पुरुष नसबंदी के आंकडों का ग्राफ कितनी तेजी से नीचे आ चुका है। परिवार नियोजन आपरेशन में महिलाओं का मुकाबला पुरुषों में बहुत बडा अंतर है। प्रदेश में पुरुषों की नसबंदी का आंकडा महज 5 से 7 फीसदी के आसपास ही है। यानी एक सौ महिलाओं पर महज पांच से सात आदमी। यह चौकाने वाला आंकडा है। मात्र 2007 से 2012 तक प्रदेश में 24 लाख 94 हजार 293 आपरेशन में से पुरुष नसबंदी केवल एक लाख 67 हजार 830 ही रही है। बीते तीन साल में भी पुरुष नसबंदी 45 हजार से घटकर 1506 तक ही सिमट गई है।
भिण्ड के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉं राकेश शर्मा ने बताया कि अपनी संकुचित सोच, हिचक, मर्दानगी का खौफ, लोगों के तानों के चलते पुरुष नसबंदी कराने को लेकर कतराते है। पुरुष के किसी भी कीमत पर तैयार नहीं होने पर मजबूरी में महिलाओं को ही अपनी नसबंदी करानी पडती है। पुरुषों को लगता है नसबंदी करा लेने से उनकी शारीरिक क्षमता और मर्दानगी में बहुत बडी कमी आएगी और वह अपना दाम्पत्य जीवन सुख से नहीं गुजार पाएगा। पुरुष नसबंदी को प्रोत्साहन देने के लिए जिला प्रशासन द्वारा एक पुरुष नसबंदी पर एक शस्त्र लायसेंस देने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन प्रशासन की यह पहल भी नाकाम रही। भिण्ड जिले में आठ माह में 110 पुरुषों ने ही अपनी नसबंदी कराई है। यह आंकडा काफी कम है। फिर भी लोगों को जागरुक किया जा रहा है।