भोपाल । प्रदेश की सभी जेलों में वैसे भी क्षमता से अधिक कैदी भरे रहते हैं। अभी कोरोना काल में भी तमाम अपराधों में लिप्त व्यक्तियों की धरपकड़ के चलते कैदियों की संख्या में कमी नहीं है। हालांकि कोरोना प्रोटोकाल का उल्लंघन करने वाले लोगों को कुछ घंटे अस्थायी जेलों में रखा जाता है, मगर भोपाल सहित प्रदेशभर की स्थायी जेलों में 50 हजार से अधिक कैदी भरे हैं, जिसके चलते बड़ी संख्या में कैदी कोरोना संक्रमण का शिकार भी बन रहे हैं।

अभी प्रदेश की जेलों में 500 से ज्यादा कैदी कोरोना संक्रमित हैं, जिनमें से कुछ अस्पतालों में भर्ती हैं तो कुछ को अलग वार्ड में रखना पड़ रहा है। लिहाजा अब तय किया गया है कि उन कैदियों को पैरोल पर रिहा किया जाए, जो कई वर्षों से सजा काट रहे हैं और जिनका व्यवहार भी अच्छा है। वहीं ऐसे विचाराधीन कैदी, जिन्हें 7 साल से कम की सजा हो सकती है, उन्हें अंतरिम जमानत पर भी रिहा कराया जा सकता है। इसके लिए अदालतों में आवेदन लगाए जाएंगे। 5 हजार से अधिक कैदियों को पैरोल पर रिहा करने की तैयारी चल रही है। कैदियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में जेलकर्मी सहित अन्य स्टाफ भी कोरोना संक्रमण का शिकार हो रहा है।

भोपाल में130 विचाराधीन बंदियों को मिली अंतरिम जमानत

 सरकार के आदेश में सजायाफ्ता बंदियों को पहले से ही पेरोल का लाभ मिला है। हाईकोर्ट के आदेश पर हाल ही में 130 विचाराधीन बंदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया है। सेंट्रल जेल में लगभग चार हजार बंदी मौजूद थे। इनमें से 675 सजायाफ्ता कैदियों को पेरोल पर छोड़ा गया है। कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए हाईकोर्ट ने सात साल से कम सजा वाले अपराध में आरोपित को गिरफ्तार न करने का आदेश दिया है। साथ ही जेल में बंद ऐसे विचाराधीन बंदियों को भी अंतरिम जमानत पर छोडऩे का आदेश दिया है, जिसमें उन्हें अधिकतम सात वर्ष तक की सजा हो सकती है।

वर्तमान में जेल में लगभग 3300 बंदी

जेलर पीडी श्रीवास्तव ने बताया कि हाल ही में 130 विचाराधीन बंदियों को अंतरिम जमानत का लाभ दिया गया है। वर्तमान में जेल में लगभग 3300 बंदी हैं। पहले रोजाना 35-40 नए बंदी जेल में दाखिल होते थे, लेकिन वर्तमान में औसतन दस बंदी जेल आ रहे हैं। इनमें गंभीर अपराध के आरोपित शामिल हैं। बंदियों की संख्या कम होने से अब काफी राहत है। गौरतलब है कि सेंट्रल जेल की क्षमता 2700 बंदियों के लायक है, लेकिन इसमें चार हजार से अधिक बंदी मौजूद थे। कोरोना की पहली लहर के दौरान सरकार ने अलग-अलग समय में सजायाफ्ता बंदियों को पेरोल पर छोडा था। बाद में उनकी पेरोल अवधि भी लगातार बढाई जाती रही थी। स्थिति सामान्य होने पर बंदी वापस जेल लौट आए थे। इस वर्ष मार्च में कोरोना की दूसरी लहर भयावह रूप में सामने आई, जिसके चलते सजायाफ्ता बंदियों के साथ ही विचाराधीन बंदियों को भी रिहा किया गया है। इससे अब जेल में कोविड गाइड लाइन का पालन सुनिश्चित हो सका है।

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