जबलपुर। मध्यप्रदेश कैडर के पांच आईपीएस अफसर (आईजी) को बारह साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद राहत मिली है। मामला सर्विस ग्रेड का है जिसका लाभ उन्हे 2008 से मिलना था, लेकिन उन्हे यह 2010 में मिल सका। इस मामले पर सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल सीट (कैट) जबलपुर द्वारा मध्यप्रदेश शासन का आदेश खारिज कर दिया गया है। आईपीएस की ओर से अधिवक्ता पंकज दुबे ने बताया कि 1995 बैच के जयदीपप्रसाद, चंचल शेखर, मीनाक्षी शर्मा, योगेश देशमुख और व्यंकटेश्वर राव को 13 साल की सर्विस पूरी करने पर सिलेक्शन ग्रेड की पात्रता थी। यह लाभ इन्हे 1 जनवरी 2008 को मिलना चाहिए था, लेकिन इन्हे यह ग्रेड 1 जनवरी 2010 को दिया गया। इसके विपरीत उन्ही के बैच के और उसके पहले वाले बैच के अधिकारियों को सही समय पर ग्रेड दिया गया। नतीजतन वे अपने ही बैच बल्कि जूनियर बैच से भी कम पे वाले हो गए।
इस मामले पर राज्य शासन से किए गए पत्राचार में देर का कोई कारण नहीं है कह कर अभ्यावेदन खारिज कर दिया गया। इसमें शासन ने यह भी कहा कि पद ही नहीं हैं। इसके बाद आईपीएस द्वारा कैट में प्रकरण दायर किया गया यहां राज्य शासन ने बताया कि आईपीएस कैडर विलम्ब से रिव्यु हुआ है इसलिए पद नहीं रहे। इस पर आईपीएस की ओर से अधिवक्ता पंकज दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के न्याय दृष्टांत का हवाला देते हुए दलील दी कि सरकार की गलती का नुकसान लोकसेवक को नहीं होना चाहिए। इस गलती के कारण आवेदक आईपीएस एडीजी के पद पर पदोन्नत नहीं हो पा रहे हैं। इस पर कैट ने राज्य शासन को तय दिनांक 1 जनवरी 2008 से सिलेक्शन ग्रेड देने का निर्णय लेने आदेशित करते हुए राज्य शासन के पुराने आदेश को निरस्त कर दिया है।