सोनागिर। परमात्मा, सत्गुरू, शान्ति, आनन्द, प्रेम कहीं दूर नहीं, तुम्हारे ही पास है। परमात्मा मन्दिर, मस्जिद में हो भी सकता है और नहीं भी, परन्तु वह तुम्हारे अन्तर्मानस में नित्य-प्रति विराजमान है। उसके नित्य प्रति तुम दर्शन कर सकते हो। परमात्मा तुम्हें इसी क्षण मिल सकता है आवश्यकता है केवल देखने की। संघर्ष तनाव से परमात्मा नहीं मिल सकता, परमात्म प्राप्ति के लिए भीतर शांति लाना बहुत आवश्यक है। क्रोध जड़ पर नहीं चेतन पर आता है। हम हमेशा किसी व्यक्ति वस्तु अथवा परिस्थिति के वश होकर क्रोध करते हैं। क्षमा के भाव से भीतर शान्ति, प्रेम, तृप्ति आती है। यह बात क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने आज बुधवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही!
मुनिश्री ने कहा कि जब तक व्यक्ति का हृदय प्रेमपूर्ण नहीं है तब तक साधना नही हों सकती । साधना में लीन हो जाओ। व्यक्ति खींचा चला आएगा। आदमी बन जाओ, परमात्मा अपने आप मिलेगा। सेवा करो, भक्ति करो इस जीवन को सफल बनाओ। सारे झगड़े परमात्मा को दो। आप केवल शरण-भाव से जीओ। परमात्मा की बात करो। सीमंधर स्वामी अरिहंत का नाम स्मरण करो। आज के युग की जितनी भी बीमारियाॅं हैं वे इस तन से नहीं केवल मन से ही हैं। शरीर की बीमारी नहीं मन की ही बीमारी है। आज के वैज्ञानिक यह बात सिद्ध करते हैं कि ध्यान से अनेकों बीमारियाॅं नष्ट हो जाती हैं।
मुनिश्री ने कहा कि भीतर प्रेम को लुटाओ, जितना बांटोगे उतना तुम्हें मिलता जाएगा। फूल की भाॅंति, नदी की भाॅंति सुगन्ध तथा पानी बांटो। सूरज जिस प्रकार सबको प्रकाश देता है उस प्रकार सबको प्रकाश दो। श्रद्धा को मूल्य देने से शान्ति आती है। संघर्ष से जीवन में अशान्ति आती है । चुनाव हमारा है, हम श्रद्धा चाहते हैं या संघर्ष। आपको जो चाहिये वह स्वीकार करो। मार्ग तो यही है।
मुनिश्री ने कहा कि प्रतिदिन प्रभु की भक्ति करो, उनकी लौ भीतर जला लो, हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश होगा । प्रार्थना करो, अहंकार छोड़ दो । जैसा तुम करोगे वैसा ही तुम्हें फल मिलेगा, अगर कांटे बोये हैं तो कांटे ही प्राप्त होंगे, आम की गुठली बोई है तो मीठे आम प्राप्त होंगे। दूसरों के दर्द में आॅंसू बहाओ। परोपकार करो। करूणामय बनो। अपने भाव विचारों को शुद्ध कर लो, यही विचारों का अनमोल सार है।