सोनागिर। व्यक्ति मन का दास बना हुआ है। मन के अनुसार ही अपने सारे काम करता है। मन के कारण व्यक्ति संसार में भटक रहा है, क्योंकि आत्मा का विनाश करने वाले पंचेंद्रियों के विषय है और विषय मन के द्वारा होते है। जो मन को मुखिया मानते है। वह चाहे तो इसी मन के द्वारा अच्छे कार्य कर सकते हैं। चाहे इसी मन के द्वारा किसी की निंदा कर सकते है। यह बात क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने आज शनिवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्मसभा में संबोधित करते हुए कही!

मुनिश्री ने कहा कि व्यक्ति संकलेष में आकर निंदा करने लगता है। नाराज होना व्यक्ति का स्वभाव है, जो किसी न किसी बात लेकर नाराज हो जाता है। यह संकलेष के कारण होता है। आज के समय में व्यक्ति स्वयं की प्रशंसा सुनना पसंद करता है। यदि अपने जीवन को बदलना है तो मन को धर्म के मार्ग पर लगाओ जिससे तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। उन्होंने कहा कि सबसे बढ़ी शक्ति धन की नहीं एकता संगठन की होती है। उन्नति, विकास का सबसे बड़ा रास्ता है एकता। सगंठन एकता में बड़ी ताकत होती है जो व्यक्ति एक से दूसरों को जोड़ता जाता है वह एक दिन परिवार, नगर, देश और राष्ट्र के निर्माण में भी सफल हो जाता है। हम देश राष्ट्र तक जब पहुंचे। आज तो हम अपने घर अपने परिवार अपने कुटुम्ब में एकता का शंखनाद करें। मुनिश्री ने कहा कि वह तभी होगा जब हम एक से एक जुड़कर चलें, आपके घर में चार सदस्य हैं तो चारों में खुशी का संचार करें। भले चार सदस्यों में मात्र आप ही सारा कार्य करते हों, मेहनत करते हों पर इसका मतलब यह नहीं कि आप दूसरो को उलाहना देने लगे, ताने कसने लगें।

मुनिश्री ने कहा कि लोगों की धारणा बनी हुई है कि वे यदि सत्य का पालन करेंगे तो उनका सारा काम बिगड़ जाएगा। व्यापार में, नौकरी में, समाज में सभी जगह बहुत कठिनाई आ जाएगी। यह मन की दुर्बलता है। झूठा व्यक्ति ही सदैव भयभीत रहता है, न मालूम कब उसके झूठ का भेद खुल जाए। सत्य के बिना अभय नहीं होता है। सत्यनिष्ठ निर्भीक और निर्भय होता है। सत्य की सदैव विजय होती है। उन्होंने कहा कि जीवन का शाश्वत सुख प्राप्त करना है, तो मन, वचन, कार्य से सत्य आचरण को अपने जीवन में प्रतिष्ठित करने की जरूरत है।

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