पटना। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का 74 साल की उम्र में निधन हो गया है। उनके बेटे चिराग पासवान ने ट्वीट कर यह जानकारी दी है। रामविलास पासवान लंबे समय से बीमार चल रहे थे। मिलनसार स्वभाव के पासवान हर सियासी खांचे में फिट बैठ जाते थे। यहीं वजह है कि उन्होंने देश के 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है। उनके नाम कई रेकॉर्ड भी है। कहा जाता है कि रामविलास राजनीति के मौसम वैज्ञानिक थे, सियासी मौसम का रुख वह पहले ही भांप लेते थे। रामविलास पासवान का जन्म बिहार के खगड़िया जिले में 5 जुलाई 1946 को हुआ था। 3 भाइयों में रामविलास पासवान सबसे बड़े थे। करीब साल भर पहले उनके मंझले भाई रामचंद्र पासवान का भी निधन हो गया था। अब उनकी पार्टी की बागडोर बेटे चिराग पासवान संभाल रहे हैं। रामविलास पासवान ने 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था। उनकी जगह उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस हाजीपुर से लोकसभा चुनाव लड़े थे।
11 चुनाव लड़े हैं पासवान
केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान अपने सियासी करियर में 11 चुनाव लड़ चुके हैं। 11 में से अभी तक वह 9 चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। बिहार में पासवान जाति में उनकी अच्छी पकड़ है। रामविलास से सियासी अदावत की वजह से नीतीश कुमार ने पासवान जाति को महादलित में नहीं शामिल किया था।
6 प्रधानमंत्रियों के साथ किया काम
रामविलास पासवान ने सियासी करियर में 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है। पहली बार वह 1989 में वीपी सिंह की सरकार में मंत्री बने थे। दूसरी बार 1996 में देवगौड़ा और गुजराल सरकार में वह रेल मंत्री बने थे। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रामविलास पासवान संचार मंत्री थे। 2004 में वह यूपीए से जुड़े और मनमोहन सरकार में रसायन मंत्री बने थे। 2014 में एनडीए में शामिल हुए और नरेंद्र मोदी की सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री बने।
2002 में सबको चौंकाया
दरअसल, रामविलास पासवान एनडीए सरकार में मंत्री थे। 2002 के गुजरात दंगों को लेकर रामविलास पासवान ने सरकार से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद लोग हैरान रह गए थे। 12 साल बाद 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार में वह केंद्रीय मंत्री बनें।
2005 में सत्ता की चाभी
रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी को पहली बार 2005 में सम्मानजनक सीटें मिली थीं। किसी भी दल की सरकार रामविलास पासवान के मदद के बिना नहीं बन सकती थी। लेकिन रामविलास पासवान मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग को लेकर अड़े हुए थे। उनकी मांग पर जेडीयू और आरजेडी तैयार नहीं थी। उसके बाद 2005 अक्टूबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुआ है। रामविलास पासवान को मुंह की खानी पड़ी।
बिहार पुलिस की नौकरी से शुरू किया था करियर
बहुत कम लोग जानते हैं कि रामविलास पासवान शुरुआत में बिहार पुलिस में नौकरी करते थे। बिहार पुलिस की नौकरी छोड़ कर राजनीति में उतरे पासवान पहली बार 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से बिहार विधानसभा के लिए विधायक चुने गए थे।
जेल भी गए पासवान
रामविलास पासवान जेपी को अपना आदर्श मानते रहे हैं। छात्र जीवन से वह समाजवादी आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं। 1975 में इमरजेंसी की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था। साल भर से ज्यादा वक्त उन्होंने जेल में गुजारी थी। 1977 में रामविलास पासवान को जेल से रिहा किया गया था।
गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में नाम
रामविलास पासवान का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में भी दर्ज है। वह 1977 में जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर रेकॉर्ड मतों से हाजीपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी।
2000 में किया एलजेपी का गठन
रामविलास पासवान ने विभिन्न दलों में रह कर अपने सियासी करियर पंख दिया है। इस दौरान वह लोक दल, जनता पार्टी-एस, समता दल, समता पार्टी और फिर जदयू में रहे हैं। उसके बाद 28 नवंबर 2000 को उन्होंने दिल्ली में अपनी अलग पार्टी बना ली थी। नाम लोक जन शक्ति पार्टी रखा था। यह पार्टी बिहार से ज्यादा केंद्र में ही सत्ता में रही है।
सोशल मीडिया पर रहते थे एक्टिव
मोदी सरकार में मंत्री बनने के बाद रामविलास पासवान सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहते थे। वह अपने विभागीय कार्यों से लोगों को अवगत कराते रहते थे। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर उन्हें लाखों लोग फॉलो करते हैं।
बेटे को सौंप दी जिम्मेदारी
रामविलास पासवान लंबे समय से बीमार चल रहे थे। अस्वस्थ रहने की वजह से वह राजनीति में सक्रिय नहीं रहते थे। इसलिए उन्होंने पार्टी की जिम्मेदारी बेटे चिराग पासवान को सौंप दी थी। अब चिराग ही पार्टी को संभाल रहे थे। बिहार चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर लड़ने का फैसला किया है।