नई दिल्ली। कोरोना वायरस एक महामारी है और इस दौरान फ्रंटफुट पर लड़ने वाले वॉरियर स्वास्थ्यकर्मी हैं। यह जानते हुए भी कि यह जानलेवा महामारी छुआछूत से फैलती है इसके बावजूद स्वास्थ्यकर्मियों ने अद्भुत साहस का परिचय दिया है। वे पिछले लगभग 6 महीने से मोर्चे पर डंटे हुए हैं। इस दौरान सिर्फ छह राज्यों (महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और गुजरात) में 87,000 से अधिक स्वास्थ्यकर्मी कोविड -19 से संक्रमित हुए हैं, जबकि 573 मौत हुई है। यह संख्या हैरान करने वाली है, क्योंकि इससे महामारी के खिलाफ लड़ाई प्रभावित सकती है।

आधिकारिक आंकड़ों से पता चला कि मरने वाले 573 स्वास्थ्यकर्मियों में से 86% से अधिक मौतों की वजह कोविड ही रहा है। अकेले महाराष्ट्र में 7.3 लाख से अधिक मामले सामने आए हैं। पॉजिटिव पाए गए स्वास्थ्यकर्मियों में यहां का आंकड़ा सबसे अधिक 28% है, जबकि मरने वालों का आंकड़ा 50% से अधिक है।

महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु ने 28 अगस्त तक प्रत्येक 1 लाख से अधिक स्वास्थ्यकर्मियों का परीक्षण किया है। कर्नाटक ने 12,260 संक्रमित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सूचना दी, जो महाराष्ट्र का आधा है। तमिलनाडु में 11,169 मामले सामने आए, जिनमें डॉक्टर, नर्स और आशा कार्यकर्ता शामिल थे। तीनों राज्यों ने कुल मिलाकर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के बीच कुल मामलों का 55% हिस्सा है। इन तीन राज्यों में भी स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की सबसे अधिक मौतें हुईं। हालांकि महाराष्ट्र और अन्य दो के बीच व्यापक अंतर है। बता दें कि महाराष्ट्र में 292 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मौतें हुई हैं, जबकि कर्नाटक और तमिलनाडु में क्रमशः 46 और 49 मौतें हुईं।


इन राज्यों में स्वास्थ्यकर्मियों की बढ़ती मौतें चिंता का विषय है। यह महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई को खतरे में डाल सकता है। इस मुद्दे पर गुरुवार को कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में हुई एक समीक्षा बैठक में केंद्र ने राज्यों को एक महत्वपूर्ण संसाधन की रक्षा करने की आवश्यकता के बारे में चेतावनी दी। बयान में कहा गया है कि राज्यों में स्वास्थ्यकर्मियों को संकमण से बचाने और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए।


सरकार को स्वास्थ्यकर्मियों के लिए 50 लाख कोविड-19 (कोरोना वॉरियर) बीमा योजना के तहत अप्रैल से अब तक केवल 143 दावे प्राप्त हुए हैं, जबकि मामलों की कहीं अधिक है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि मौतों और दावों की संख्या के बीच व्यापक अंतर हो सकता है, क्योंकि इसमें से कई मौते बीमा के लिए पात्र नहीं रही होंगी। इसके अलावा, एप्लीकेशन आने में थोड़ा वक्त लग सकता है, क्योंकि मृतकों के परिवारों को आवेदन करने के लिए आवश्यक कागजी कार्रवाई करने में समय लगता है।

भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य फाउंडेशन के महामारी विशेषज्ञ, गिरिधर बाबू ने कहा कि उनके परिवारों के लिए 2 करोड़ रुपये से अधिक का बीमा कवर प्रदान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा- स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं सिर्फ शब्दों से प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए, बल्कि ठोस प्रयास किए जाने चाहिए। मणिपाल हॉस्पिटल्स के चेयरमैन डॉ. एच. सुदर्शन बल्लाल ने कहा- स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा करना महत्वपूर्ण है, जिससे कि इनकी संख्या में कमी नहीं आए और हम आने वाली चुनौतियों के लिए अच्छी तरह तैयार रह सकें।

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