सोनागिर। महापुरुषों के केवल आदर्शों की प्रशंसा नहीं की जाना चाहिए उन्हें पसंद भी किया जाना चाहिए। दुनिया महापुरुषों के आदर्श की प्रशंसा तो करती है मगर आत्मसात नहीं करती आज आवश्यकता है उन्हें जीने की। महापुरुष किसी जाति या संप्रदाय की बपौती नहीं होते वह तो संपूर्ण मानव जाति की धरोहर है। ऐसी धरोहर जिसके अंदर राष्ट्र को बदलने की क्षमता है दुनिया को वह नहीं बदलते जो दुनिया को बदलने के बारे में सोचते हैं। दुनिया को वह बदलते हैं जो अपने आप को बदलने के लिए सोचते हैं। यह विचार क्रांतिवीर मुनिश्री प्रतीक सागर जी महाराज ने सोनागिर स्थित आचार्य श्री पुष्पदन्त सागर सभागृह में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कही!
मुनि श्री ने कहा कि दूसरों को बदलने की चेष्टा करना महावीर की नजरों में हिंसा है लोग सोचते हैं हम कितने भी पाप और गुनाह कर ले तीर्थ यात्रा कर लेंगे दान पुण्य कर लेंगे तो सब पाप धुल जाएंगे। इस देश का ज्ञानी पुरुष कहता है अनजाने में किया हुआ गुनाह भगवान के चरणों में आकर समाप्त हो जाता है! मगर जानबूझकर के किया गया अपराध दुनिया का कोई भी परमात्मा तुम को उस से मुक्त नहीं कर सकता है। पाप और पारा कभी छुपता नहीं है वह 1 दिन दुनिया के सामने आ ही जाता है।
मुनि श्री ने कहा कि संत मुनियों को आज एक होने की जरूरत है जिस दिन दुनिया भर के संत वक्त और तख्त पर एक साथ बैठने लग जाएंगे उस दिन सारा विश्व एकता के सूत्र में बध जाएगा। संत समाज और राष्ट्र का सच्चा मार्गदर्शक होता है। जब मार्ग दर्शकों में ही आपसी फूट हो तो राष्ट्र का उद्धार कौन करेगा। मैं इस देश का संत होने के नाते संपूर्ण संत समाज से आग्रह करता हूं कि वह अपने बड़े और छोटे की भावनाओं को त्याग कर समाज और राष्ट्र को एक करने के लिए कृत संकल्पित होकर बुराइयों के खिलाफ चलाए जा रहे महायज्ञ में लग जाए। संतो के एक होते ही जाति और संप्रदाय की दीवारें टूटेगी आपस में प्रेम और भाईचारे का रिश्ता कायम होगा फिर केवल भाई जिंदा नहीं रहेगा भाईचारा जिंदा होगा। जो भारत देश की हमारी संस्कृति है।
मुनि श्री ने कहा कि अर्जुन को युद्ध क्षेत्र में विजई होने के लिए नारायण श्री कृष्ण को अपना सारथी चुनना पड़ा। तभी अर्जुन बुराई रूपी कौरवों पर विजय प्राप्त कर सके। आज संतों को भी पथभ्रष्ट समाज नेताओं को सत मार्ग दिखाने की आवश्यकता है। पंच सितारा संस्कृति के खिलाफ युद्ध क्षेत्र में अपने अर्जुन ओं का सारथी बनकर उतरने की आवश्यकता है। जिस दिन देश का हर संत सारथी बनकर समाज के बीच में उतरेगा बुराइयों के खिलाफ लड़ रहे पांडवों का मार्गदर्शन करेंगे और कलयुग का अर्जुन जब उनके मार्गदर्शन पर चलेगा तब भारत का एक नया अध्याय का प्रारंभ होगा जिसे आने वाला समय उज्जवल भविष्य के नाम से जानेगा।