भोपाल। शहर के अंदर और नगर निगम सीमा में आने वाले इलाकों में आज भी 30 प्रतिशत जनता खुले में शौच जा रही है। ऐसे में बीएमसी कमिश्नर के लिए ओडीएफ प्लस लाना एक चुनौती बन गया है। स्वास्थ्य विभाग ने बीते कई सालों के दौरान लाखों रुपए खर्च करके 200 से अधिक सुलभ शौचालय बनवाए हैं। 70 ओडीएफ पाइंट्स चिन्हित किए हैं, इसके बावजूद खुले में शौच जाना आज भी लोगों की मजबूरी बना हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन संसाधनों के मेंटेनेंस का काम सिर्फ कागजों में किया जाता है। जब स्वच्छता सर्वेक्षण पखवाड़ा शुरू होता है, तब अफसरों को सुलभ शौचालय, सार्वजनिक शौचालय और मॉडयूलर टॉयलेट की याद आती है। बाकी समय वहां की व्यवस्थाएं हमेशा ठप रहती हैं।
शहर के अंदर और आसपास के लगभग दो दर्जन से अधिक इलाकों में लोग खुले में शौच जाते हैं। शहर के गरीब नगर, भोपा नगरी, अन्नानगर, आनंद नगर, बैरागढ़ चीचली, गेहूंखेड़ा, दामखेड़ा, लांबाखेड़ा, करोंद, बैरागढ़ बीसीएलएल बस डिपो, पॉलिटेक्निक, श्यामला हिल्स, रविन्द्र भवन, बिड़ला मंदिर, गणेश नगर, मिसरोद, जाटखेड़ी आदि इलाकों लोगों को खुले में शौच जाता देखा जा सकता है।
हर साल लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी शहर के कई सुलभ शौचालयों में पानी नहीं होता, कहीं की लाइटें खराब रहती है, तो कहीं पर ताला डाला रहता है। प्रशासन एकडमी और भेल दशहरा मैदान के सामने बने शौचालय में कभी पानी नहीं रहता। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में बीते सालों में रखे गए मॉडयूलर टॉयलेट खराब होने के बाद दोबार नहीं रखे गए।
ओडीएफ प्लस लाने का दावा करने वाली टीम की असलियत यह है कि वह सुलभ व सार्वजनिक शौचालय और मॉडयूलर टॉयलेट के अंदर तक झांकते नहीं है। टीम बाहर बैठी रहती है, कर्मचारी जाकर अंदर का जायजा लेता है। इस आधार पर रिपोर्ट तैयार हो रही है। जबकि इस काम में पारदर्शित रखने के लिए जोनल अधिकारी के साथ दूसरे जोन के एएचओ ओर एई को मॉकड्रिल काम सौंपा गया है। इसके बावजूद इस काम को लेकर लापरवाही बरती जा रही है।