भोपाल। एमपी में सरकार दक्षिण कोरिया और दिल्ली के मॉडल पर सरकारी स्कूलों में व्यवस्थाएं करने का दावा कर रही है। लेकिन सरकारी स्कूलों की हकीकत इस बात से पता चलती है कि हजारों स्कूलों में पढने वाले छात्र ही नहीं हैं। इस वजह से लगातार दूसरी साल 13 हजार स्कूल बंद करने की तैयारी की जा रही है। बीते साल 2019 में 15,000 से अधिक सरकारी स्कूल बंद किए गए थे, 2020 में करीब 13000 सरकारी स्कूल बंद करने की तैयारी शुरू हो गई है। दरअसल, सरकार ने एक ऐसा प्रावधान कर दिया है जिसके चलते हर साल सरकारी स्कूल बंद होते जाएंगे।
राज्य शिक्षा केंद्र ने एक आदेश जारी कर जिले के अधिकारियों से कहा कि उन स्कूलों की समीक्षा की जाए जहां छात्रों की संख्या 0 से 20 है। ऐसे स्कूलों को समीप के स्कूलों में मर्ज कर शिक्षकों की सेवाएं कार्यालय या फिर अन्य स्कूलों में ली जाएं। राज्य शिक्षा केंद्र की सूची में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर संभाग के जिलों में सबसे ज्यादा स्कूल बंद होंगे।
देवास-18, शिवपुरी-16, उज्जैन-19, इंदौर-10, धार-21, खरगोन-27, सागर-48, दमोह-27, पन्ना-27 सहित अन्य जिलों में भी शून्य छात्र संख्या वाले स्कूल बंद होंगे।
यह है वह सरकारी प्रावधान जो निशुल्क शासकीय शिक्षा को खत्म कर रहा है
स्कूल शिक्षा विभाग के नियमानुसार मिडिल स्कूल संचालित करने के लिए 20 से ज्यादा छात्र होना आवश्यक है तो वहीं प्रायमरी स्कूल में उस स्थिति में ही संचालित हो सकते हैं जब 40 छात्र होंगे। यदि इससे कम छात्र संख्या होगी तो सरकार छात्र संख्या बढ़ाने का प्रयास नहीं करेगी बल्कि स्कूल बंद कर देगी। कुल मिलाकर सरकार का फोकस स्कूल बंद करना है। यदि आप कर्मचारियों को स्वतंत्र छोड़ दें तो वह सरकारी हो या प्राइवेट काम नहीं करेंगे। यह प्रावधान उस समय उचित प्रतीत होता है जब इसमें लिखा होता कि यदि किसी इलाके में 5 साल तक बच्चे पैदा ना हो तो वहां स्कूल बंद कर दिया जाएगा लेकिन यदि बच्चे हैं तो उन्हें स्कूल तक लाना और उनके लिए शिक्षा का प्रबंध करना सरकार की जिम्मेदारी है।
इस मामले में विभागीय अधिकारियों का तर्क है कि जिन स्कूलों में छात्र नहीं हैं ऐसे स्कूलों को समीप के किसी स्कूल में मर्ज किया जाएगा। शिक्षकों भी दूसरों स्कूलों में मर्ज किया जाएगा। फिलहाल इसकी समीक्षा की जा रही है। जिलों को भी निर्देश जारी किए गए हैं।
जिला शिक्षा अधिकारी की ओर से जारी आदेश में राजधानी के 79 स्कूलों को बंद करने के आदेश दिए गए हैं। इनमें सरकारी स्कूलों के अलावा प्रायवेट और मदरसे भी शामिल हैं। इनको बंद करने के पीछे शून्य छात्र संख्या, स्कूल संचालकों द्वारा स्वेच्छा से बंद करने और डुप्लीकेट शाला होने के कारण इस साल से ये बंद किए जा रहे हैं।