सोनागिर। सेवा से बढ़कर सुख नहीं, प्रेम से बढ़कर प्रार्थना नहीं, सहानुभूति से बढ़कर सौंदर्य नहीं, धन और तन तो एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। मगर मन जब भगवान से लग जाता है तो वह मिट्टी भी सोना बन जाती है। तन को हजारों बार सजाया मगर मन को कभी नहीं सजाया इसीलिए तो दुखों की सजा काटना पड़ती है। तन और धन अपने परिवार रिश्तेदारों को दें, मगर अपना मन परमात्मा के सिवाय किसी और को ना दें। जिस हृदय में परमात्मा का निवास होता है उन्हें कभी हार्ड अटैक नहीं आता! वह एक जन्म में ही कई जन्मों का आनंद उठा लेते हैं। यह विचार क्रांतिवीर मुनि प्रतीक सागर जी महाराज’ ने सोनागिर स्थित आचार्य पुष्पदंत सागर सभागृह मैं धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही!

मुनि श्री ने कहा एक मां 100 टीचर के बराबर है क्योंकि संतान की पहली गुरु मां होती है। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर विवेकानंद और आचार्य पुष्पदंत सागर जी को महान बनाने वाली उनकी मां थी। मां अगर चरित्र से पतित हो जाए तो संतान का भविष्य अंधकार में चला जाता है। मां दीपक की तरह है जो हर वक्त अपनी संतान का मार्गदर्शन करती है। उंगली पकड़कर अच्छे और सच्चे रास्ते पर चलना सिखाती है। मां को संस्कारवान और चरित्रवान होना जरूरी है क्योंकि पिता से भी ज्यादा बच्चे मां से प्रभावित होते हैं। मां वह नहीं होती है जो सुबह बच्चों को स्कूल जाने के लिए उनका बैग और टिफिन तैयार करके देती है मां वह होती है स्कूल की तैयारी के पहले भगवान के अभिषेक का कलश बच्चों के हाथ में पकड़ा देती है। जिन बच्चों को बचपन में भगवान के अभिषेक का कलश आ जाता है उनके हाथों कभी शराब का प्याला नहीं आता। बचपन में जिनके हाथों में अष्ट द्रव्य की थाली पकड़ा दी जाती है उनकी थाली में कभी मांसाहार नहीं आता। प्रभु के चरणों में लगाने को अगरबत्ती पकड़ा दी जाए तो कभी वह संतान आगे चलकर बीडी सिगरेट का सेवन नहीं करती।

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