नई दिल्ली. पांच अगस्त 2020 एक ऐसी तारीख जो इतिहास में दर्ज हो गई है. यह वह तारीख है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमि पूजन कर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की औपचारिक शुरूआत की. 32 सेकेंड का ही शुभ मुहूर्त होने के बाद भी मंदिर की आधारशिला रखकर इस दिन को ऐतिहासिक बना दिया है. ऐसे ही 5 अगस्त, 2019 को जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह संसद पहुंचे तो किसी को भी आभास भी नहीं था कि आज भारत की राजनीति में एक इतिहास बनने जा रहा है. अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म कर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के ‘एक देश-एक विधान-एक निशान’ के सपने को साकार कर दिया.

मोदी सरकार ने अपने मूल एजेंडे में शामिल अहम मुद्दों को अमलीजामा पहनाने के लिए जिस तरह से 5 अगस्त का दिन चुना है, वह अब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने और अब राम मंदिर निर्माण के आगाज के साथ-साथ बीजेपी और संघ के वैचारिक सपनों को साकार करने वाली तारीख बन गई है. इस तारीख को आने वाले दिनों में लंबे समय तक के लिए याद किया जाएगा. पांच अगस्त की तारीख की हर कोई अपनी-अपनी तरह से व्याख्या करेगा और निष्कर्ष निकालेगा. ऐसे में सवाल उठता है कि 5 अगस्त 2021 को क्या मोदी सरकार अपने एजेंडे में शामिल समान नागरिक संहिता को देश में लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाएगी?
 

बीजेपी का अब तीसरा सबसे बड़ा मुद्दा यूनीफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) है. यह कोड मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदू पर्सनल लॉ जैसे धर्म-आधारित कानूनों की जगह पर सभी के लिए एक कानून लागू करने की बात करता है. यह मुख्य रूप से शादी, पैतृक संपत्ति, तलाक और अन्य धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है. भारत में यूनीफॉर्म क्रिमिनल कोड है जो अपराध करने पर धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता, लेकिन तलाक और पैतृक संपत्ति के मामले में कानूनों में एकरूपता नहीं है. इस तरह से मौजूदा समय में देश में सिविल कोड सभी धर्म के अपने अलग-अलग हैं. बीजेपी ने देश में यूनीफॉर्म क्रिमिनल कोड की तरह कॉमन सिविल कोड लाने का वादा अपने घोषणा पत्र में किया है.

राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 का मुद्दा सुलझाने के बाद अब मोदी सरकार की नजर यूनीफॉर्म सिविल कोड पर रहेगी. अगस्त 2018 में लॉ कमीशन ने ‘रिफॉर्म ऑफ फैमिली लॉ’ रिपोर्ट बनाई है. इसमें इस बात की ओर इशारा किया गया है कि महिलाओं और कमजोर तबकों के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए. उन्हें यूनीफॉर्म सिविल कोड के जरिये सुरक्षा का छाता देने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट भी कई मामलों में यूनीफॉर्म सिविल कोड की वकालत कर चुका है.
 

वरिष्ठ पत्रकार केजी सुरेश कहते हैं कि मोदी सरकार अपने मूल एजेंडे पर न सिर्फ लौट आई है बल्कि पूरी धमक के साथ उसे अमलीजामा भी पहनाने लगी है. बीजेपी को वोट देने वालों का नजरिया भी बहुत स्पष्ट है, उन्होंने विकास को नहीं बल्कि विचार को वोट दिया है. इसलिए मोदी सरकार विचारधारा को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रही है.

वह कहते हैं कि समान नागरिक संहिता बीजेपी के एजेंडे का अहम हिस्सा है और सरकार इसे कानूनी रूप देने को लेकर संजीदा भी है, लेकिन मोदी सरकार इसे कब लागू करेगी यह नहीं कहा जा सकता है. केजी सुरेश कहते हैं कि मोदी सरकार ने तीन तलाक पर फैसला आने के बाद कानून बनाकर यूनीफॉर्म सिविल कोड की तरफ एक कदम पहले ही बढ़ा दिया है. हालांकि, धार्मिक परंपराओं और भावनात्मक रूप से लोग इससे जुड़े हुए हैं तो सरकार एक ऐसा माहौल बना रही है ताकि लोग खुद से सहमत हो जाएं.


वहीं, वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि नरेंद्र मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जो अपने एजेंडे और विचाराधारा को लेकर पूरी तरह से कमिटेट दिखे हैं. वह पिछले 6 सालों में अपने एजेंडे पर ही कायम रहे हैं, क्योंकि वह आरएसएस से बीजेपी में आए हैं. ऐसे में संघ के सपने को साकार करना निश्चित तौर पर उनकी अपनी जिम्मेदारी है, लेकिन प्रधानमंत्री होने के नाते देश के प्रति भी उनकी अपनी जवाबदेही है.

वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद राम मंदिर निर्माण को लेकर किसी ने भी सवाल नहीं खड़ा किया है. यूनीफॉर्म सिविल कोड की बात है उसमें एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि संविधान सभा में इसे लागू करने को लेकर मौलिक अधिकारों के अध्याय में सर्वसम्मति नहीं थी. सरदार पटेल के नेतृत्व वाली सब-कमेटी ने 5:4 के बहुमत से कॉमन सिविल कोड को अस्वीकार किया था. इससे यह बात स्पष्ट है कि संविधान ने धार्मिक आस्था और परंपराओं को कॉमन सिविल कोड पर तरजीह दी थी. यही भारत की धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करना है.

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