भिण्ड। मध्यप्रदेश के भिण्ड के चैत्यालय आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज ने कहा कि जैन शासन के प्रसिद्ध शास्त्र समाधि तंत्र में कहा गया है रुचि जिस व्यक्ति या वस्तु में लगती है चित्त उसी में जाता है हेयोपादेय का निर्णय कर्तव्य अकर्तव्य का विवेक ही बुद्धि है विद्या का अर्थ पुस्तकीय रटी उधारी ज्ञान है पढ़ना रटना सुनाना विद्या है लेकिन विद्या के साथ बुद्धि ना हो तो विद्या का मूल्यांकन नहीं हो सकता
परीक्षा हॉल में रटी नहीं विचार में उतरी विद्या यानी बुद्धि काम आती है विद्या के अभाव में जिंदगी सफल हो जाती है पर बुद्धि के अभाव में सफलता नहीं मिलती जैन आचार्य परम पूज्य आचार्य शांतिसागर जी व आर्यिका ज्ञानमती गणनी आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी आदि स्कूली शिक्षा में कम रहे पर बड़े.बड़े विद्वानों को पढ़ाते थे संगी तोते को लोग पालते हैं क्योंकि सोचने विचारने की क्षमता रखते हैं बंदर भालू के कर्तव्य भी ऐसे होते हैं सोच विचार कर के काम या बात करो तो सम्मान मिलता है
शुभ चंद्र आचार्य ने कहा ष्वरम बुद्धि न सा विद्याष् ‘‘बुद्धि हीना विनसयंतीष् लापरवाहीया सजा बन जाती है सम्यक बुद्धि हो कुबुद्धि नहीं सुबुद्धि व्यक्ति को उठाती है सब को सम्मान दिलाता है खुशी बड़ाता है विपत्ति में भी साहस दिलाता है बुद्धिहीन स्वयं दुखी होता है व सबको करता है लेकिन दृष्टि से देखते हैं मूर्तिकार मूर्ति बनाने से पहले मूर्तियों को ज्ञान में देख लेता है चित्रक़ार की दृष्टि में चित्र आता है बुद्धि में चित्र आया रुचि ने गति दे दी धर्म कहता है विवेक ज्ञान के साथ आचरण करो तो सफलता मिलेगी होश में मुझे दर्शन आधी आधी करना है बुद्धि के साथ रुचि है तो कार में सही सफलता मिलती है रुचि ताकत देती है चेन न लेने दे वह रुचि है स्टूडेंट गृहस्थी समाज देश या कोई क्षेत्र हो बुद्धि हो जिससे निर्णय कर सके रुचि से करें तो सफलता हाथ में है कीमत बुद्धि की है क्योंकि एनर्जी वेस्ट होती है स्वयं की सुनो फिर दूसरे की। श्रद्धा दीपक की लौ की तरह कच्ची होती है उसे ज्ञान के कांच से डाको वरना बुझ जाएगी पूजा के पहले आदर तथा विनय आता है विद्या विनय से अर्जन करो तभी आनंद आ सकता है।