इंदौर. कोरोना संक्रमण को लेकर इंदौर अब देश के लिए मॉडल शहर बन गया है. दरअसल, इंदौर ने बेहतरीन कार्य योजना से कोरोना पर तेजी से काबू पाने का एक जरिया ढूंढ लिया है. अब जिले में कोविड इंदौर एप के जरिए और जीपीएस तकनीकी की मदद से लोगों की मॉनिटरिंग की जा रही है. इस एप में जो फीचर्स हैं वो मरीजों की ट्रेसिंग और इलाज में काफी मददगार साबित हो रहे हैं. वहीं, स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान का कहना है कि इस एप को प्रदेश के हर जिले को अपनाने की जरूरत है क्योंकि देश में अपने तरह का ये अलग ही साइबर नवाचार है. इसके जरिए ही इंदौर कोरोना की जंग जीतेगा.
वहीं, इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह के बताते हैं कि जैसे ही व्यक्ति में सर्दी और खांसी के लक्षण दिखाई देते हैं तो इस एप के जरिए सीधा इसका अलर्ट डॉक्टरों के तक पहुंच जाता है. साथ ही इसकी सूचना जीएसआईटीएस कॉलेज में बने कंट्रोल रूम मे भी पहुंच जाती है. अलर्ट मिलते ही डॉक्टरों की टीम 1 से 2 घंटे में मरीज के पास पहुंचकर जांच करती है. डॉक्टर को संदिग्ध मामला लगता है तो तीन तरह के अलर्ट दिए जाते हैं. जैसे व्यक्ति क्वारेंटाइन जाने योग्य है,अस्पताल जाने योग्य है या कोरोना की जांच के लिए सैंपल लेने योग्य है. इसी आधार पर रैपिड रिस्पांस टीम के प्रशासनिक अधिकारियों, एसडीएम, एडीएम और सैंपल टीम को मैसेज चले जाते हैं और मरीज ट्रेस हो जाता है. अब इंदौर इसी प्रोटोकॉल के साथ काम कर रहा है.
इंदौर जिला पंचायत के सीईओ और कंट्रोल रूम प्रभारी रोहन सक्सेना ने बताया कि सबसे पहले इस एप के जरिए स्क्रीनिंग और सर्वे का काम किया गया. इसके बाद सभी आंगनवाडी आशा कार्यकर्ताओं के मोबाइल में ये एप डाउनलोड कर दिया गया, जिसे सीधे कंट्रोल रुम से जोडा़ गया है. शहर के सभी घरों पर जाकर करीब 35 लाख लोगों का सर्वे कर उनका डाटा इस एप में सेव हो गया. साथ ही कोविड पॉज़िटिव के संपर्क में आए लोगों का डेटा इसमें दर्ज हो गया. जिससे ये साफ हो गया है कि होम क्वारेंटाइन किसे करना है. इसके जरिए इसकी बकायदा मानिटरिंग की गई. मोबाइल जीपीएस से ये पता चल जाता है कि जो व्यक्ति होम क्वारेंटाइन है वो और कही तो नहीं जा रहा है. उसकी लोकेशन पता लग जाती है. उसका अलर्ट रैपिड रिस्पोंस टीम तक पहुंच जाता है. होम आइसोलेशन में जिन्हें रखा गया उन्हें हर रोज चार बार डेटा अपलोड करना होता है और उन पर कंट्रोल रूम से बकायदा नजर रखी जाती है.
कंट्रोल रूम में पदस्थ डॉक्टर अनिल डोंगरे का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग की गाइड लाइन्स के मुताबिक मरीज या उसके केयर टेकर को मोबाइल एप में हर रोज जानकारी दर्ज करनी होती है. कहीं उसे 101 डिग्री फॉरेनहाइट से ज्यादा बुखार या सांस लेने में तकलीफ तो नहीं है. उसे कोविड 19 के सामान्य लक्षणों के आधार पर तैयार कुछ दूसरे सवालों के जबाव भी देने होते हैं. मरीजों की ऐप में दर्ज जानकारी के आधार पर कंट्रोल रुम में तैनात डॉक्टर लगातार नजर रखते हैं और मरीज को उचित सलाह देंते हैं.
यदि किसी मरीज में गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं तो रैपिड रिस्पांस टीम तत्काल ऐसे मरीजो को उनके घरों से अस्पतालों में भिजवाने का काम करती है. इमरजेंसी में मरीज या उसका केयर टेकर ऐप में सहायता का लाल बटन दबाकर खुद भी डॉक्टरों को बुला सकता है. यदि मरीज सरकार की हिदायतों का उल्लंघन करते हुए मोबाइल के साथ 100 मीटर के दायरे से बाहर निकलता है तो कंट्रोल रूम में तुरंत अलार्म बज जाता है. अब इस एप से हाल ही में शुरू किए गए फीवर क्लीनिक भी जोड़ दिए गए है जिससे इन क्लीनिक में इलाज कराने आने वाले मरीजों की जानकारी भी मिल जाती है.
इस एप ने प्रशासन, पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की मुश्किलों को काफी कम कर दिया है. कोई व्यक्ति किसी सामान्य सर्दी-खांसी के लिए स्थानीय डोक्टर के यहां जाता है तो उसके लक्षण के आधार पर डेटा दर्ज हो जाता है और रेपिड रेस्पान्स टीम उस पर तत्काल संज्ञान ले लेती है. इसके साथ ही जो लोग दूसरी जगहों से इंदौर पहुंचते हैं चाहे वो सड़क, रेल या हवाई मार्ग से आए हो उनकी डोमेस्टिक ट्रैवल का डेटा भी इस एप में दर्ज हो जाता है.