भिण्ड। चौंकिये मत, यह सत्य है कि भारत में सन 2050 आते-आते 2 करोड़ 80 लाख पुरूषों की शादियां नहीं हो पाएंगी। इसकी वजह है भारत में लड़कियों की लगातार घटती संख्या का होना। यह कहना है एशिया पेसिफिक कान्फ्रेंस के हवाले से कलेक्टर अखिलेश श्रीवास्तव का।
बालिका भूण हत्या की वर्तमान स्थिति पर कलेक्टर श्रीवास्तव बताते हैं कि यदि प्रसव पूर्व निदान तकनीक में बढ़ोतरी और लिंग अनुपात में इसी तरह गिरावट आती रही, तो कुंवारे रहने वाले पुरूषों की संख्या में और बढ़ोत्तरी होगी। यह प्रवृत्ति गरीब पुरूषों को ज्यादा प्रभावित करेगी, क्योंकि सामान्यतया महिलाएं उच्च आर्थिक स्तर वाले व्यक्तियों को विवाह हेतु प्राथमिकता देती हैं। इसके दुष्परिणाम वर्ग आधारित तनाव, महिलाओं की खरीद-फरोख्त एवं यौन हिंसा में बढ़ोत्तरी के रूप में होंगे। अधिक आयु के पुरूषों के साथ शादियों (बेमेल विवाह) की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी।


भारतीय समाज में बालिका भूण हत्या के लिए कई सामाजिक रूढि़यां व्याप्त हैं। कुछ भ्रांतियां ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, तो कुछ शहरी क्षेत्रों में, लेकिन अन्ततया इनका खामियाजा हमारी बेटियों को ही भुगतना होता है। रूढि़यों एवं भ्रांतियों में लोगों को लड़कियों की सामाजिक सुरक्षा की चिन्ता बनी रहती है तथा उनका मानना रहता है कि लड़कों से ही वंश चलता है, वही मुä दिला सकते हैं तथा वृद्वावस्था में बेटे अपने माता-पिता की बेहतर देखभाल करते हैं। जबकि लड़कियां पराया धन होती हैं और अपने घर चली जाती हैं। एक सोच यह भी रहती है कि भविष्य में लड़कियों को दहेज देना पड़ेगा।
कलेक्टर अखिलेश श्रीवास्तव ने बताया कि इस संबंध में किये गये विभिन्न अनुसंधान एवं अध्ययन के आधार पर यह पाया गया है कि उच्च शिक्षित एवं सम्पन्न परिवारों द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक रूप से गरीब परिवारों की तुलना में अधिक लिंग परीक्षण करवाया गया है। भारत के सम्पन्न राज्यों में शिशु लिंगानुपात अपेक्षा कम है। बेटों के प्रति चाहत से बेटियों के प्रति सक्रिय भेदभाव की प्रवृत्ति निर्मित हुई है। साक्षरता सिर्फ डिगी तक सीमित है, पर लोगों की मानसिकता अभी भी रूढि़वादी है। आर्थिक विकास एवं मानव विकास के बीच खार्इ बढ़ी है। जानकारी, आर्थिक संसाधन एवं पहुंच, तीन ऐसे कारक हैं,जो यदि एक साथ मिलते हैं, तो लिंग निर्धारण तकनीक के उपयोग तथा लिंग चयन की संभावना बढ़ जाती है। सोनोग्राफी केन्æों की उपलब्धता तथा सन 1981 से 2001 के बीच शिशु लिंगानुपात में गिरावट में सीधा संबंध है। परंपरा (बेटे की चाहत) एवं तकनीक (अल्ट्रासाउण्ड सोनोग्राफी) के बीच के अपवित्र रिश्ते ने भारतीय समाज में तबाही मचा दी है।
कलेक्टर श्रीवास्तव का कहना है कि प्रदेश में बालिकाओं की घटती संख्या निशिचत ही चिन्ता का विषय है और इस दिशा में ठोस प्रयास किये जाने की तत्काल आवयकता है। यदि अभी प्रयास नहीं किये गये, तो बहुत देर हो जाएगी। घटते हुए शिशु लिंगानुपात के विरूद्व व्यापक जनजाग्रति लाना आवयक है, ताकि समाज की मानसिकता में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके। इसके साथ ही भूण लिंग परीक्षण एवं अन्य भूण हत्या में संलिप्त सेवा प्रदाताओं को रोकने के लिए प्रभावी प्रयास किये जाना आवयक हैं। अलवत्ता भिण्ड जिले में इस दिशा में सक्रिय प्रयास शुरू किये गये हैं। पूरे मध्यप्रदेश में भिण्ड जिला एक ऐसा जिला है जहां लडकियों की संख्या सबसे कम है यहां एक हजार लडकों पर 838 लडकिया है। भिण्ड में करीबन एक दर्जन से अधिक गांव ऐसे है जहां लडकियों की संख्या न के बराबर है। उन गांव को चिनिहत कर लिया गया है।

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