ग्वालियर। मध्यप्रदेश के मुरैना के जौरा गांधी सेवा आश्रम में 14 अप्रैल 1972 की तारीख 70 के दशक का सबसे अहम दिन था। यही वह तारीख है, जब चंबल के कटीले बीहड की सत्ता छोडकर 37 वर्षीय बागी सम्राट मोहर सिंह गुर्जर ने महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने हथियार डाले थे। समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से बागी जीवन छोडा तो दोबारा ताउम्र बीहड आकर्षित नहीं कर पाया। समाज की मुख्यधारा में वापस आए तो लोग उन्हें दद्दा कहकर पुकारने लगे। भिण्ड जिले की मेहगांव नगर परिषद में निर्विरोध अध्यक्ष बने। समाज, गरीबों के लिए खूब काम किया। आज सुबह 92 वर्ष की उम्र में इस पूर्व बागी मोहर सिंह का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में पूर्व विधायक ओपीएस भदौरिया शामिल हुए।

भिण्ड जिले के गोहद के जटपुरा गांव में जमीन हथियाने के लिए सताने वाले को गोलियों से छलनी कर 1958 में मोहर सिंह गुर्जर ने बीहड की राह पकड ली थी। समाज की मुख्यधारा में आने के बाद पूर्व बागी मोहर सिंह गुर्जर ने कई बार अपने संस्मरण सुनाते हुए खुद बताया था कि वे बीहड में पहले से सक्रिय बागी गिरोह में शामिल होना चाहते थे, लेकिन बागी गिरोह ने उन्हें नौसिखिया समझा। अपनी अलग राह बनाई। एक-एक कर 150 बागियों का गिरोह बनाया। 60 के दशक में यह मोहर सिंह गुर्जर का गिरोह सबसे ज्यादा खूंखार माना जाता था। गिरोह के पास आधुनिक हथियार थे, जो उस जमाने में पुलिस के पास भी नहीं होते थे। यही वजह है कि 1958 से 1972 तक 14 साल कटीले बीहड में एकछत्र राज करने के दौरान पुलिस कभी भी पूरी ताकत से सामना नहीं कर पाई थी। मोहर सिंह गिरोह पर 60 के दशक में 12 लाख रुपए का इनाम था। खुद मोहर सिंह के सिर पर 2 लाख का इनाम रहा। जौरा में गांधी सेवा आश्रम में आत्मसर्मण किया तब गिरोह के नाम 80 से ज्यादा हत्याएं, 350 से ज्यादा केस थे। आत्मसमर्पण के दौरान उन्होंने एसएलआर, सेमी ऑटोमैटिक गन, 303 बोर चार रायफल, 4 एलएमजी, स्टेनगन, मार्क 5 रायफल सहित बडी संख्या में हथियार महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने रखे थे।

पूर्व बागी मोहर सिंह गुर्जर कहते थे कि उनके गिरोह ने कभी डकैती नहीं डाली। डकैती के दौरान कई गिरोह घर का तमाम सामान लूटते और महिलाओं को बुरी नजर से देखते थे, जो उन्हें कतई पसंद नहीं था। इसीलिए डकैती के बजाए अपहरण करते। फिरौती के रूप में लाखों रुपए वसूलते। इन रुपयों से गिरोह के सदस्यों को और ताकतवर बनाते। बागी जीवन में महिलाओं और गरीबों की सदैव इज्जत की। मोहर सिंह कहते थे उन्होंने अपने 14 वर्ष के बागी जीवन में कई गरीब बेटियों की शादी करवाई। गरीबों और बेटियों की दुआओं ने उन्हें बीहड में पुलिस की गोली से जिंदा सलामत बचाकर रखा था। गिरोह के सदस्यों को बता दिया गया था, जो महिलाओं को गलत नजर से देखेगा उसे गोली से उडा दिया जाएगा।

मोहर सिंह गुर्जर ने 1965 में साथी बागी नाथू सिंह के साथ मिलकर दिल्ली के कुख्यात मूर्ति तस्कर का अपहरण किया था। तस्कर को दिल्ली से हवाई जहाज के जरिए ग्वालियर बुलवाया गया। ग्वालियर से तस्कर को बीहड में लेकर आए। दिल्ली के तस्कर को रिहा करने के एवज में 26 लाख रुपये की रकम उस जमाने में वसूली की गई थी। दिल्ली के तस्कर का अपहरण और फिरौती में मिली 26 लाख की रकम ने चंबल के बीहड में मोहर सिंह गुर्जर का राज कायम कर दिया था।

आत्मसर्मण के बाद मोहर सिंह गुर्जर और उनके साथियों को ग्वालियर सेंट्रल जेल सहित अन्य जेलों में रखा गया। 8 साल खुली जेल में बिताने के बाद मोहर सिंह को सरकार की ओर से मेहगांव में जमीन मिली। बेटे कल्याण सिंह, सत्यभान सिंह गुर्जर एक बेटी ममता को पढाने के लिए वजीफा मिला। सेंट्रल जेल में उन्होंने मुरैना के एसपी को खुली चुनौती दी थी, दरअसल मुलाकात के बाद एसपी ने मोहर सिंह से कहा था कि कुछ दिन और आत्मसमर्पण नहीं करते तो मुठभेड में मार दिए जाते। इसी बात पर एसपी को चुनौती दी थी।

आत्म समर्पित दस्यु मोहर सिंह बताते थे कि पीडित को न्याय मिले तो कोई कभी परिवार को गांव को, घर व समाज को छोडकर बीहड का रास्ता नहीं अपनाएं। अगर उन्हें भी न्याय मिला होता तो उनको भी बीहड का रास्ता नहीं पकडना पडता। मोहर सिंह एकदम खुले मन से बोलते थे। उन्होंने कहा था कि कोई फरियादी पुलिस के पास जाता है तो पुलिस उसकी मदद करने की वजाए उल्टे उसे उत्पीडित करती है। जब पीडित बीहड में जाकर बंदक थाम लेता है तो वहीं पुलिस उसकी मदद करती है।

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