जबलपुर कोरोना वायरस के संक्रमण ने वो कर दिया जो देसी-विदेशी सरकारें भी नहीं कर पायी थीं. जबलपुर की सेंट्रल जेल अब नियम के मुताबिक हो गयी है. जेल में अब क्षमता से कम कैदी हो गए हैं. ये सब कोरोना के कारण हुआ.
प्रदेश की किसी भी अन्य जेलों की तरह जबलपुर ज़िला जेल में भी क्षमता से कहीं ज़्यादा कैदी ठूंस-ठूंस के भरे हुए थे. ये जेल प्रशासन की मजबूरी भी थी. जेल में जगह कम है और कैदी ज़्यादा. लेकिन जेल प्रशासन क्या करता. कैदियों को कहां रखता. इसलिए जितनी जगह है उसी में सबको रखा हुआ था.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस केन्द्रीय जेल जबलपुर 1874 में बनकर तैयार हुई थी. इसमें 2420 कैदियों को रखने की क्षमता है. लेकिन इससे कहीं ज़्यादा तादाद में यहां कैदी थे. बार बार कैदियों की परेशानी की बात उठती थी. कई जनहित याचिकांए अदालतों की दहलीज़ पर पहुंचीं, जिसमें जेलो के ओवरक्राउड को कम करने की मांग की गई. लेकिन दिनो दिन बढ़ते अपराधों ने ऐसा मुमकिन होने ही नहीं दिया. बीते दस साल में जेलों की क्षमता बढ़ाने के प्रयास हुए लेकिन कैदी दिन ब दिन बढ़ते गए.
जबलपुर की नेताजी सुभाषचंद्र बोस केन्द्रीय जेल मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी जेल का ओहदा रखती है. पहले इसकी क्षमता 1400 थी. पिछले साल इसे बढ़ाकर 2420 कैदियों का कर दिया गया. लेकिन ये जगह भी नाकाफी थी. इस बीच फैले कोरोना संक्रमण के कारण सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जेल प्रशासन ने कैदियों को पैरोल पर छोड़ने का फैसला किया और 380 कैदियों को छोड़ दिया गया.
कैदियों को पैरोल पर क्या रिहा किया, अब इस जेल में क्षमता से कम कैदी हो गए हैं. कोविड संक्रमण के कारण सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सज़ायाफ्ता कैदियों को 45 दिन की अंतरिम जमानत और महामारी पेरोल पर छोड़ा जा रहा है. इस आदेश के बाद जबलपुर जेल से 380 कैदी छोड़ दिए गए. इसके बाद यहां अब 2300 कैदी रह गए हैं जो जेल की क्षमता से 120 कम है. कोविड संक्रमण से बचाव के लिए जबलपुर जेल से 45 दिन की अंतरिम जमानत पर 130 कैदी और महामारी पैराल पर 60 दिन के लिए 250 कैदी जबलपुर जेल से छोड़े गए है.