भोपाल। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ऐसे लोगों की तलाश तेज कर दी है जो केंद्रीय ऊर्जा राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पिता स्वर्गीय माधव राव सिंधिया के विरोधी के तौर पर गिने जाते रहे हैं। पार्टी मगर ‘सिंधिया राजघराने’ के विरोध से परहेज कर रही है।

राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाला है। भाजपा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चेहरा आगे कर चुनाव लड़ने जा रही है तो कांग्रेस ने सीधे तौर पर किसी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित नहीं किया है, मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर एक संदेश देने की जरूर कोशिश की है। ज्योतिरादित्य को प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से ही भाजपा ने नई रणनीति बनाना शुरू कर दी है। सिंधिया को नई जिम्मेदारी मिलने के बाद से ही मुख्यमंत्री चौहान कांग्रेस को राजा महाराजा की पार्टी बताकर हमला बोल रहे हैं, मगर पार्टी व चौहान सीधे तौर पर सिंधिया घराने पर हमला नहीं कर रहे हैं। इसके पीछे उनकी मजबूरी भी है, क्योंकि राजमाता विजयाराजे सिंधिया भाजपा की संस्थापकों में रही हैं और वसुंधरा राजे व यशोधरा राजे सिंधिया वर्तमान में भाजपा की ताकतवर नेता हैं। सामंतवाद को लेकर अंतर्द्वद्व से जूझ रही भाजपा पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी सवाल खड़ा किया है। उनका कहना है कि उनकी दादी और बुआ ने भाजपा के लिए काम किया तब उन्हें उनके परिवार में सामंतवाद नजर नहीं आया, अब उनमें सामंतवाद नजर आ रहा है। भाजपा की इस समय सबसे पैनी नजर ग्वालियर-चंबल संभाग के नेता और बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जयभान सिंह पवैया पर है। पवैया की गिनती ग्वालियर महल विरोधी के तौर रही है। पवैया 1998 में लोकसभा चुनाव ग्वालियर से लड़े थे और संसद पहुंचे थे।

पवैया इस चुनाव में ‘महल विरोधी’ के तौर पर उभर कर सामने आए, मगर उसके बाद पवैया का राजनीतिक जीवन ही संकट में पड़ गया। पार्टी ने उन्हें 2008 में ग्वालियर से विधानसभा का चुनाव लड़ाया, मगर अपनों ने भी साथ नहीं दिया और वे चुनाव हार गए। पार्टी पवैया को इस बात के लिए तैयार कर रही है कि वे ज्योतिरादित्य के खिलाफ पूरे राज्य में दौरे करें, मगर पवैया बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। वे ग्वालियर से विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं। वे दूध के जले हैं, लिहाजा छांछ भी फूंक-फूंक कर पी रहे हैं। आईएएनएस ने जब उनसे आगामी चुनाव में ज्योतिरादित्य के खिलाफ उनके उपयोग की बात की तो वे चुप रहे। उनका कहना है कि पार्टी का जो निर्णय होगा, उसी आधार पर वह काम करेंगे। पवैया के अलावा भाजपा अभी हाल ही में कांग्रेस छोड़कर आए विधायक चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी का भी इस्तेमाल ज्योतिरादित्य के खिलाफ करने पर विचार कर रही है। चौधरी कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह से लेकर अजय सिंह तक पर जोरदार प्रहार करते रहे हैं। पार्टी इसी तरह उनका ज्योतिरादित्य के खिलाफ इस्तेमाल करना चाह रही है। ज्योतिरादित्य विरोधी के तौर पर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा का भी इस्तेमाल किए जाने की तैयारी है। यह बात अलग है कि शिवपुरी में सिंधिया राजघराने पर जमीन कब्जाने का आरोप लगाने वाले झा का पार्टी ने साथ नहीं दिया था और वह पार्टी के दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष नहीं बन पाए। वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया का कहना है कि भाजपा को अगर वाकई सिंधिया को घेरना है तो उनके समकक्ष उदाहरण के तौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और संगठन महामंत्री अरविंद मेनन को सामने लाना चाहिए। ऐसा न होकर जिन्हें इस काम में लगाया जा रहा है, वे वर्षो से सिंधिया का विरोध करते आ रहे हैं। लिहाजा, उन लोगों का असर तो हो सकता है मगर नतीजे नहीं आ सकते। भाजपा की सिंधिया विरोधियों को तलाशने की कोशिश कितनी सफल होती है और परवान चढ़ती है, यह देखने के लिए कुछ समय और इंतजार करना होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि सिंधिया राजघराने का विरोध करने वालों को पार्टी में ज्यादा महत्व नहीं मिला है।

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