ग्वालियर। मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले में स्थित मेडिकल कॉलेज में फार्मासिस्ट वंदना तिवारी की ग्वालियर में दर्दनाक मौत हो गई। नॉन स्टॉप कोरोना ड्यूटी के चलते उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ था। शर्मनाक बात यह है कि ग्वालियर के जयारोग्य चिकित्सालय में डॉक्टरों ने उनका इलाज ही नहीं किया था। 24 घंटे तक लावारिस पड़े रहने के बाद उनके पति उन्हें एक प्राइवेट अस्पताल में ले गए थे। मेडिकल कॉलेज, शिवपुरी कलेक्टर, ग्वालियर कमिश्नर से लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान तक किसी ने वंदना की मदद नहीं की।

जानकारी के अनुसार शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में फार्मासिस्ट पद पर पदस्थ वंदना तिवारी को कोरोना संक्रमण के खिलाफ काम करने वाली टीम में तैनात किया गया था। बताया गया है कि 31 मार्च को ऑन ड्यूटी अचानक तबीयत खराब हो गई। जिला चिकित्सालय लाया गया। जहां डॉक्टरो ने वंदना तिवारी को ग्वालियर के जयारोग्य चिकित्सालय में रैफर कर दिया। वहां 24 घंटे तक एक भी डॉक्टर उन्हे देखने तक के लिए नहीं आया। प्राथमिक उपचार तक शुरू नहीं किया गया। डॉ वंदना तिवारी लावारिस पड़ी रही, तड़पती रही।

वंदना के परिजनों ने जयारोग्य के अस्पताल प्रबंधन का यह रवैया देखा तो वंदना तिवारी को ग्वालियर के बिरला हॉस्पिटल में 1 अप्रैल को भर्ती कराया गया। वहां डॉक्टर अभिषेक चैहान ने इलाज शुरू किया एमआरआई कराने के बाद बताया कि वंदना को ब्रेन हेमरेज हुआ है। तत्काल आपरेशन करना होगा। बिरला हॉस्पिटल के डॉक्टरो ने वंदना के ब्रेन का आपरेशन किया गया, लेकिन वह कोमा में चली गई थी।

वंदना के पति ने बताया कि आन ड्यूटी उसकी तबीयत खराब हुई थी। डॉ वंदना के विभाग ने उनकी कोई मदद नहीं की। शिवपुरी कलेक्टर ने हाल चाल सब नहीं जाना। शिवपुरी मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ. इला गुजरिया सिर्फ मदद करने का आश्वासन देती रही लेकिन कोई मदद नहीं की। ग्वालियर में डॉक्टरों ने इलाज नहीं किया। ग्वालियर कलेक्टर और ग्वालियर कमिश्नर ने कोई मदद नहीं की। कथित संवेदनशील मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। अंततः वंदना तिवारी ने दम तोड़ दिया।

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