ग्वालियर। कोई भी कर्मों का फल प्राप्त किए बिना मुक्त नहीं हो सकता। कर्म के आगे किसी का जोर तथा रिश्वत भी नहीं चलती। कर्म एक स्वतंत्र सत्ता है और जीव को प्राणियों को कर्म करने का स्वतंत्र हक है और कर्म फल भी कर्म स्वभाव से ही प्राप्त होता है। कर्म का फल कोई परमात्मा नहीं देता। व्यक्ति जो करता है, वही उसे मिलता है। अच्छे कर्म करता है तो अच्छा फल मिल जाता है, बुरे कर्म करता है तो बुरा फल मिल जाता है। पक्का हुआ आम कभी कड़वा नहीं हो सकता वो सदैव मीठा ही रहता है। यह बात राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज की साधना अनुष्ठान में तानसेन नगर स्थित न्यू कालोनी में व्यक्त किए! मुनिश्री विजयेश सागर महाराज भी मोजूद थे!
मुनिश्री ने कहा इसी प्रकार से अच्छे कर्म का फल हमेशा सुखदायी होता है। इसलिए हमें सर्वदा अच्छे कर्म, श्रेष्ठ कर्म, उत्तम कर्म जिसमें आत्मा को सुख हो, आत्मा की मुक्ति हो और सर्वजन के लिए हितकारी हो। ऐसा श्रेष्ठ कर्म सदैव करना चाहिए। प्रभु महावीर इस संदर्भ में कहते हैं कि आत्मा स्वयं कर्ता है, स्वयं भोगता है। आत्मा स्वयं मित्र और स्वयं शत्रु है। इसी बात को कर्म योगी श्री कृष्ण कहते है कि कर्म करते जाओ फल की इच्छा मत करो।
अच्छे-बुरे कर्मों का फल तुम्हें स्वयं ही मिलेगा। इसी बात को भगवान बुद्ध कहते है कि अच्छे कर्मों का परिणाम अच्छा ही होता है और बुरे कर्मों का परिणाम बुरा ही होता है। संत ने कहा कि व्यवहारिक दृष्टि से भी कोई मनुष्य मदिरा पीने का कर्म करता है तो मदिरा पीने का परिणाम उस मनुष्य को मिलता है। इसके विपरीत कोई व्यक्ति शहद पीने का कर्म करता है तो उसकी जिह्वा मीठी हो जाती है। ठीक इसी प्रकार से सब कर्मों का अपना स्वभाव है। वह अपने कार्य अनुसार कर्मानुसार अपना स्वभाव छोड़ता है।
उन्होंने कहा कि बुरे कर्मों का त्याग करना चाहिए तथा अच्छे कर्म सदैव करने चाहिए। अच्छे कर्म करने पर भी अभिमान नहीं रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि निरपेक्ष भाव से अच्छे श्रेष्ठ कर्म सदैव करने पर परमात्मा की प्राप्ति होती है।
जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज की साधन, अखण्ड मौन, उपवास एवं अनुष्ठान के दौरान आज मुनिश्री विहर्ष सागरजी ने विशेष मंत्रो का उच्चारण कर भगवन शांतिनाथ का अजय जैन व विजय जैन अमन जैन ने अभिषेक ओर शांतिधारा की! दीपो से आरती की गई! हवन कुंड में विश्व मे कोरोना वायरस से बचाने के लिए मंत्रो का उच्चारण कर आहुतिया दी!