( एन के त्रिपाठी )
शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए हैं। वे किन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री बने यह कोई बहुत बड़ा रहस्य नहीं है। 2018 में शिवराज सिंह चौहान ने तीसरी बार मुख्यमंत्री रहने के बाद बड़ी वीरता से चुनाव लड़ा था।एंटी इन्कम्बेंसी को दरकिनार करते हुए वे पाला छूने के क़रीब पहुँच गए थे।लेकिन लगता था जनता कुल मिलाकर कांग्रेस की सरकारचाहती थी। बहुमत सेएक सीट कम पाकरनिर्दलीय, सपा एवं बसपा के समर्थन से सरकार बन गई।सिंधिया को यह क्षीण आशा थी कि संभवत: उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया जाए। लेकिन उनका क्षेत्र सीमित था और अधिकांश विधायक दिग्विजय सिंह के साथ थे और उन्होंने कमलनाथ समर्थकों के साथ मिलकर सरकार बना ली।
कमलनाथ के नेतृत्व में बनी सरकार में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने जिस प्रकार अपनी प्रसन्नता का तांडव किया उससे सिंधिया का विक्षुब्ध होना स्वाभाविक था। यहाँ तक कि कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष का पद भी सिंधिया को देना गवांरा न किया। सभी मंत्रियों को कैबिनेट का पद किस कारण दिया गया इसकी जानकारी सभी सिंधिया समर्थकों को थी। सत्ता के सारे सूत्र समक्ष में कमलनाथ तथा पर्दे के पीछे दिग्विजय सिंह के हाथ में थे।
राज्य सभा चुनाव आने पर सिंधिया को सीट देने की स्पष्ट घोषणा नहीं की गई और लगभग उन्हें सीट न मिलना तय था। कमलनाथ और दिग्विजय ने सिंधिया के धैर्य के बाँध टूटने की सीमा को सही ढंग से नहीं आंका। कांग्रेस का निष्क्रिय और अक्षम नेतृत्व अर्थात राहुल गांधी इस स्थिति को भाँप नहीं पाए या वे कुछ करना ही नहीं चाहते थे। सिंधिया के उनसे पुराने रिश्ते न तो सिंधिया के घावों को पहचान पाए और न ही इसके लिए उनके पास कोई समय था। सिंधिया ने दलबदल किया और उनके समर्थक विधायक चट्टान की तरह उनके साथ खड़े रहे जिसकी वजह से हाशिये पर खड़ी कमलनाथ सरकार अपने ही बोझ से चरमरा कर गिर पड़ी। कुछ दिन पहले कमलनाथ ने BJP के दो विधायकों को तोड़ने का प्रयास कर बरैया के छत्ते में हाथ डाल दिया था। गुस्साई भाजपा ने सही समय पर सुनहरा मौक़ा देख सिंधिया की मजबूरियों को संबल और शक्ति प्रदान की।भाजपा को मित्रवत राजभवन से पूरी सहायता मिली और शिवराज सिंह को थाली मे मुख्यमंत्री पद मिल गया। अपनी पार्टी में उन्हें कोई चुनौती नहीं थी। कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि मध्य प्रदेश के इस हादसे की गूंज दूर-दूर तक जायेगी।
(लेखक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी रहे है। वर्तमान हालातों पर वह स्वतंत्र रूप से लिखकर अपनी बात रखते है।)