नई दिल्ली। आगामी लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे भाजपा नेताओं में अंतर्कलह कम होने का नाम नहीं ले रही है। 2014 में पार्टी की चुनाव प्रचार की कमान नरेंद्र मोदी को सौंपने को लेकर अभी तक राजनीति हो रही है, जबकि नितिन गडकरी के अध्यक्ष रहते ही यह निर्णय हो चुका था। सूत्रों के मुताबिक, लाल कृष्ण आडवाणी मोदी की जगह गडकरी को चुनाव प्रचार की कमान सौंपने की तैयारी में थे, लेकिन गडकरी ने यह पद संभालने से इंकार कर दिया है। गडकरी ने कहा है कि पार्टी ने पहले से ही इसके लिए मोदी को तय कर दिया है।

हालांकि सियासी हलकों में इसे मोदी और आडवाणी के बीच बढ़ती दूरियों के तौर पर देखा जा रहा है। बताया जाता है कि आडवाणी ने इस मामले को लेकर कई बार गडकरी से मुलाकात की है। उन्होंने गडकरी को बताया कि उन्हें अध्यक्ष पद से हटाने के लिए पार्टी के ही एक नेता ने गुमराह किया था।

गौरतलब है कि गडकरी की कंपनियों पर छापेमारी के बाद उन्हें अध्यक्ष पद से हटाने में आडवाणी ने बड़ी भूमिका निभाई थी। सूत्रों के मुताबिक, अब आडवाणी गडकरी को मनाने में कामयाब नहीं हो सके।

गडकरी ने स्पष्ट कर दिया है कि जब पहले ही इस पद के लिए मोदी का नाम लगभग तय हो चुका है तो उनके नाम को आगे बढ़ाना ठीक नहीं होगा। दरअसल, मोदी और आडवाणी के बीच खाई बड़ी होती जा रही है।

वहीं, शिवराज सिंह चौहान को नरेंद्र मोदी से बेहतर मुख्यमंत्री बताने वाले लालकृष्ण आडवाणी के बयान के बाद भाजपा खुलकर गुजरात के मुख्यमंत्री के साथ खड़ी हो गई है। दोनों की तुलना पर संघ में भी नाराजगी बताई जा रही है। संघ-भाजपा के वरिष्ठ नेता इसे बेवजह और गलत समय पर की गई तुलना मान रहे हैं। संकेत हैं कि गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस मसले पर आडवाणी को कार्यकर्ताओं की नाराजगी का ताप भी झेलना पड़ सकता है।

आडवाणी के बयान पर मचा बवाल तो सामने आए राजनाथ

इसीलिए, राजनाथ सिंह और खुद मप्र के सीएम शिवराज चौहान ने आगे आकर इस विवाद को शांत करने की कोशिश की। संकेत यह भी हैं कि गोवा कार्यकारिणी में मोदी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाने की मांग जोर पकड़ सकती है।

शिवराज की तारीफ में आडवाणी ने ये कहा

कार्यकारिणी में मोदी का जाना तय है पर आडवाणी की शिरकत की पुष्टि नहीं हुई है। दरअसल, आडवाणी के बयान को नरेंद्र मोदी के पीएम पद की दावेदारी के खिलाफ पार्टी के भीतर हो रही राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है, जबकि कार्यकर्ता मोदी की दावेदारी पर किसी भी तरह की राजनीति के खिलाफ है। इसीलिए, पार्टी में बढ़ती नाराजगी दूर करने को दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक नेताओं ने मोर्चा संभाला।

हैदराबाद में राजनाथ सिंह ने मोदी को सबसे लोकप्रिय नेता बताकर यह जताने की कोशिश की कि शिवराज को उनके खिलाफ खड़ा करने का प्रयास नहीं हो रहा।

वहीं, भोपाल में खुद शिवराज ने आडवाणी के बयान की गलत व्याख्या किए जाने का आरोप लगाते हुए मोदी को बड़ा भाई और बड़ा नेता बताया। दिल्ली में पार्टी महासचिव राजीव प्रताप रूढ़ी ने विवाद की जिम्मेदारी मीडिया पर डाल दी।

वैसे पार्टी सूत्र मान रहे हैं कि मोदी की बढ़ती अपील को आडवाणी अपनी महत्वाकांक्षा के कारण स्वीकार नहीं कर पा रहे। यही कारण है कि वह मोदी की तुलना में शिवराज को आगे बढ़ाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। राजनाथ के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी पदाधिकारियों की नियुक्ति व संसदीय बोर्ड के गठन के दौरान आडवाणी ने शिवराज के लिए सारे घोड़े खोल दिए थे। वह चौहान को संसदीय बोर्ड में शामिल कराना चाहते थे। इसी तरह 2014 में चुनाव प्रचार की कमान मोदी को सौंपने को लेकर अभी तक राजनीति हो रही है, जबकि गडकरी के अध्यक्ष रहने के दौरान ही यह निर्णय हो चुका था।

मोदी के खिलाफ पार्टी के भीतर ही हो रही राजनीति से कार्यकर्ताओं के साथ-साथ संघ में भी बेहद नाराजगी है। उन्हें लग रहा है कि आपसी राजनीति में कहीं संप्रग सरकार के खिलाफ बने माहौल को भुनाने का मौका हाथ से न निकल जाए। संघ समय-समय पर पार्टी को गुटबाजी से बाहर निकलने के निर्देश देता रहा है। हालांकि संघ और राजनाथ की पार्टी में गुटबाजी रोकने की तमाम कोशिशें नाकाम रही हैं।

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