ग्वालियर। मध्यप्रदेश के ग्वालियर संभाग के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) राजाबाबू सिंह ने रेंज के पुलिस अधीक्षकों को निर्देशित किया कि वे संगीन अपराधों में वांटेड अपराधियों को एक माह में कोर्ट से फरार घोषित कराएं। फरार घोषित होने के बाद इनके खिलाफ 174ए के तहत प्रकरण दर्ज करें। इस मामले में अपराध सिद्ध होने पर अलग से 7 साल की सजा का प्रावधान है। आईजी ने दावा किया है कि प्रयोग के तौर पर पंकज सिकरवार हत्याकांड के आरोपितों के खिलाफ रेंज में पहली बार इस तरह की कार्रवाई की गई है। इस कानूनी प्रावधान से पुलिस अपराधियों पर शिकंजा कस सकती है।
आईजी राजाबाबू सिंह ने पत्रकारों को बताया कि ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर इन चारों जिलों के पुलिस अधीक्षकों को पत्र लिखकर निर्देशित किया है कि वे पहले संगीन अपराधों में फरार बदमाशों को सूचीबद्ध करें। इसके बाद विवेचकों से इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 85(4) के तहत न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत कराकर इन्हें फरार घोषित कराने के साथ इनकी संपत्ति की कुर्की कराएं। इस धारा का सफल उपयोग सनसीखेज पंकज सिकरवार हत्याकांड में किया गया है। कोर्ट ने इस धारा के तहत पहले नामजद आरोपियों को कोर्ट में हाजिर होने के लिए उद्घोषणा की। निर्धारित अवधि में हाजिर नहीं होने पर इनकों कोर्ट ने फरार घोषित कर दिया। इस कार्रवाई के बाद इनकी संपत्ति कुर्क करने के साथ इनको आश्रय देने वाले के खिलाफ प्रकरण दर्ज करने का प्रावधान है। सीआरपीसी 85(4) के तहत विवेचक कोर्ट में संगीन अपराधी को फरार घोषित करा सकता है।
आईपीसी 175 ए- कोर्ट द्वारा अपराधी को फरार घोषित किए जाने के बाद उसके खिलाफ इस धारा के तहत नया प्रकरण दर्ज किया सकता है। इस धारा में आरोपी को 7 साल की सजा का अलग से प्रावधान है। आईपीसी-212- कोर्ट से आरोपी को फरार घोषित करने के बाद अगर कोई उसे आश्रय देता है तो पुलिस आईपीसी की धारा 212 के तहत उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सकती है। हालांकि यह धारा जमानती है। फरार घोषित अपराधी को देश का कोई नागरिक धारा 43 के तहत पकड़कर पुलिस के सुपुर्द कर सकता है। उस अपराधी की गिरफ्तारी पर घोषित इनाम का पकड़ने वाले नागरिक का अधिकार होगा।
आईजी राजाबाबू सिंह ने कहा कि चारों रेंजों में संगीन अपराधियों की संख्या सैकडों में हैं। इनकी गिरफ्तारी पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई है। इन कानूनी प्रावधानों के तहत अगर पुलिस कार्रवाई करती है तो उनका दावा है कि अपराधी को देश के किसी कोने में छिपने का स्थान नहीं मिलेगा। एक और प्रकरण दर्ज होने के भय से अपराधी सरेंडर कर देगा और लोग भी प्रकरण दर्ज होने के डर से उसे आश्रय देने का साहस नहीं करेंगे।