विपक्ष ने मतगणना से पहले ही हार के कारण तलाश करने शुरू कर दिए थे। उन्होंने ईवीएम में गड़बड़ी, वीवीपैट से मिलान में कमी से लेकर ईवीएम की सुरक्षा पर सवाल खड़े किए। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट से लेकर चुनाव आयोग के सामने ये सभी आरोप निराधार साबित हुए। सात चरणों के मतदान में 10.36 लाख ईवीएम इस्तेमाल हुईं। इनमें से केवल 1.3 प्रतिशत मशीनों में खराबी की शिकायत आई। रिजर्व मशीनों से उन्हें बदल दिया गया। परिणाम के बाद किसी भी विपक्षी नेता ने ईवीएम या वीवीपैट की शिकायत नहीं की।

कुल 4120 ईवीएम के मतों का वीवीपैट पर्चियों से मिलान किया गया। केवल ओडिशा में एक ईवीएम की गिनती वीवीपैट से न मिलने की शिकायत मिली थी। लेकिन, पुनर्गणना में यह शिकायत भी गलत साबित हुई। पहले 21 दलों के नेता ईवीएम की शिकायत करने चुनाव आयोग गए थे। समाधान न मिलने पर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सौ फीसदी ईवीएम और वीवीपैट की पर्चियों की मिलान की मांग की। हालांकि अदालत ने हर विधानसभा क्षेत्र की पांच ईवीएम को वीवीपैट से मिलाने का आदेश दिए।

मतदान के बाद और मतगणना से पहले विपक्षी दलों ने ईवीएम की सुरक्षा का मामला उठाया। लेकिन, चुनाव आयोग ने हर शिकायत का उचित निदान किया। हर जगह पाया गया कि जिन ईवीएम को बिना सुरक्षा के ट्रकों में लादा जा रहा था, वे रिजर्व थीं, जिनका मतदान के दौरान इस्तेमाल नहीं किया गया था। एक वरिष्ठ भाजपा नेता का कहना था कि परिणाम आने के बाद संभवतया कुछ लोग इन आरोपों पर भरोसा कर भी लेते यदि भाजपा जादुई आंकड़े के कुछ दूर रह जाती या बमुश्किल बहुमत पाती। लेकिन, उसे मिले प्रचंड बहुमत ने विपक्षी नेताओं की बोलती बंद कर दी है।

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