ग्वालियर। बेटे के बचपन की अठखेलियों में मां गर्भावस्था व प्रसव पीड़ा दोनों को भूल जाती है। बेटा बचपन से जवानी आने तक मां के लाड़.प्यार में रहता है, बेटा क्या, खा रहा है, कब खा रहा है, क्या खेलता है, क्या पहनता है, बेटा नशा तो नहीं करने लगा गलत संगत से सप्त व्यसनी तो नहीं हो गया, यदि इस अवस्था में मां बेटे पर ध्यान दे दें तो बेटे का बचपन संवर जाता है। यह विचार जैन मेडिटेशन विहसंत सागर मुनिराज ने डी.डी नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में मंगल प्रवेश के दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनिश्री ने कहाकि गर्भावस्था एवं जन्म पश्चात बचपन में दिए गए संस्कार और मन.वचन.काया से ली गई शिक्षा यौवन अवस्था में धर्म मार्ग की ओर ले जाती है। इससे युवा और वृद्धावस्था दोनों सुखद हो जाते हैं। संस्कार डालना, प्राप्त करना, दिया जाना कुछ भी उम्र के वशीभूत नहीं है। मनुष्य जब चाहे तब संस्कारित और प्रतिज्ञाबद्ध हो सकता है। व्यक्तिगत संस्कार पूरे परिवार को जोड़कर रखने में समर्थ होते हैं। प्रौढ़ावस्था से अनुकूल बनाने का प्रयास करते रहने पर बुढ़ापा धर्म में सुखद हो जाता है। मुनिश्री के चरणो में मंदिर समिति के बाबूलाल जैन, व्ही के जैन, एमएसीए जैन, विपुल जैन, सुभाश जैन, कमल जैन, अनूप जैन, प्रवक्ता सचिन जैन एवं जैन मिलन वर्धमान अनिता जैन, षालू जैन, शिवानी जैन आदि ने श्रीफल चढकार अशीर्वाद लिया।

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