नारी सशक्तिकरण का नारा आए सदी बीतने को है। महिलाओं को बराबरी का हक देने की बात पुरजोर तरीके से होती है। निश्चित ही समाज की सोच बदली है। लेकिन नसबंदी के मामले में नहीं।

भारतीय पुरुष अब भी पुरानी सोच से उबर नहीं पाया है। वह दशकों पुराने उसी ढर्रे पर कायम है। नसबंदी को लेकर वह अब भी उतना ही डरा हुआ है। लिहाजा परिवार नियोजन का सारा बोझ महिला पर डाल दिया गया है। मप्र से इसकी एक बानगी मिल रही है।

एक वक्त था जब नसबंदी कराने के विचार मात्र से भारतीय पुरुष की रूह कांप उठती थी। यह डर आज भी कायम है। पुरुष मानते हैं कि इससे उनका पौरुष खत्म हो जाएगा। यही कारण है कि नसबंदी के ऑपरेशन में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की भागीदारी एक फीसद भी नहीं है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की हालिया रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि मप्र में वर्ष 2018-19 में एक अप्रैल से अब तक कुल 2.90 लाख नसबंदी ऑपरेशन हुए, जिनमें पुरुषों की संख्या महज 2100 है। शेष 2 लाख 87 हजार 900 महिलाएं हैं।

नसबंदी के मामले में असमानता के लिए कहीं न कहीं सरकार की रीति-नीति भी जिम्मेदार है। जो आजादी के 72 साल भी पुरुष प्रधान मानसिकता से ग्रसित होकर तैयार की जाती है। यही कारण है नसबंदी के लक्ष्य में पुरुषों की भागीदारी आज भी दो से तीन फीसद ही रखी जाती है। मप्र के इस साल के लक्ष्य में जहां महिलाओं के लिए 3.5 लाख ऑपरेशन का लक्ष्य रखा गया है, वहीं पुरुषों के ऑपरेशन का लक्ष्य महज 10 हजार है जबकि महिला नसबंदी के मुकाबले पुरुष नसबंदी ज्यादा आसान है।

महिला डॉक्टरों के अनुसार नसबंदी का लक्ष्य निजी अस्पतालों को भी दिया जाता है। आमतौर पर ऑपरेशन केजरिये होने वाले प्रसव के दौरान महिला से नसबंदी के लिए सहमति ली जाती है और सहमति मिलने पर नसबंदी कर दी जाती है। यही वजह है महिलाओं की नसबंदी का लक्ष्य प्राप्त हो जाता है।

पुरुषों में नसबंदी को लेकर जागरूकता लाने के लिए स्वास्थ्य विभाग प्रयास कर रहा है। ऑपरेशन के दौरान कभी कपड़े बांटे जाते हैं तो कभी अन्य उपहार के साथ-साथ महिलाओं के मुकाबले प्रोत्साहन राशि भी ज्यादा दी जाती है। इसके बाद भी बदलाव नहीं हो रहा।

जेपी अस्पताल में डिलेवरी के लिए आई 28 साल की मालती बाई (बदला नाम) ने ऑपरेशन से हुए प्रसव के बाद नसबंदी का ऑपरेशन भी करवाया। ऑपरेशन को लेकर जानकारी चाहने पर महिला ने बताया कि सास ने उसे कहा था कि नसबंदी ऑपरेशन भी करा लो। पति ने भी बताया कि ऑपरेशन से घर के काम में कोई दिक्कत नहीं आएगी। इतनी सारी महिलाएं कराती हैं, तुम भी ऑपरेशन करवा लो…।

पुरुषों को लगता है पुरुषत्व में कमी आएगी। मेहनत का काम भी नहीं कर पाएंगे। यह निराधार भ्रांति पढ़े-लिखे लोगों में भी है। पुरुष नसबंदी ज्यादा आसान है। इंफेक्शन का डर भी नहीं रहता- डॉ. वीणा सिन्हा, गायनाकोलॉजिस्ट व संयुक्त संचालक स्वास्थ्य सेवाएं

ग्रामीण क्षेत्रों में सोच है कि बच्चे को जन्म देने का काम महिला का है तो परिवार कल्याण भी उसी की जिम्मेदारी होनी चाहिए। पुरुषों का दबाव भी रहता है कि महिलाएं ही ऑपरेशन कराएं- डॉ. शैलजा दुबे, समाजशास्त्री ,

इंस्टीट्यूट ऑफ एक्सीलेंस, भोपाल

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