वैसे तो नोटबंदी को मोदी सरकार ब्लैकमनी के खिलाफ बड़ा फैसला बताती रही है लेकिन इस फैसले की वजह से बेरोजगारी में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी है. यह आंकड़ा 45 सालों के उच्चतम स्तर पर है. इससे पहले 1972-73 में देश में बेरोजगारी की दर 6 फीसदी से ज्यादा थी. अहम बात ये है कि आंकड़े नोटबंदी के बाद के हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरी क्षेत्र में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है. आंकड़ों के मुताबिक शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी की दर 7.8 फीसदी है जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 5.3 फीसदी है. वहीं, 2017-18 में युवाओं की बेरोजगारी दर में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. इस दौरान ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित महिलाओं की बेरोजगारी दर बढ़कर 17.3 फीसदी रही है. इससे पहले 2004-05 से 2011-12 के बीच ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं की बेरोजगारी दर 9.7 फीसदी से 15.2 फीसदी के बीच थी. वहीं, ग्रामीण क्षेत्र के शिक्षित पुरुषों की बेरोजगारी दर का आंकड़ा 10.5 फीसदी पर है. बता दें कि 2004-05 से 2011-12 के बीच यह आंकड़ा 3.5 से 4.4 फीसदी के बीच था.
ग्रामीण इलाकों में बेरोजगार युवाओं की तादाद में 3 गुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. ग्रामीण क्षेत्र के 29 साल तक की उम्र के युवाओं की बेरोजगारी दर 17.4 फीसदी रही है. इससे पहले 2011-12 में यह आंकड़ा सिर्फ 5 फीसदी था. वहीं युवा महिलाओं की बेरोजगारी दर 13.6 फीसदी पर है. जबकि 2011-12 में यह आंकड़ा 4.8 फीसदी पर था.
बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक नोटबंदी के बाद हालात बिगड़ गए और बेरोजगारी में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. बता दें कि 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था. इस ऐलान के बाद 500 और 1000 रुपये के नोट अवैध हो गए. नोटबंदी को सरकार कठोर लेकिन सफल फैसला बताती रही है.इस रिपोर्ट का खुलासा अंतरिम बजट से मात्र एक दिन पहले हुआ है. नौकरी के मोर्चे पर विपक्ष के निशाने पर रही मोदी सरकार के लिए ये आंकड़े परेशानी बढ़ा सकते हैं. अगले कुछ महीनों में ही लोकसभा चुनाव भी होने वाला है.